केवल वर्षा में वृद्धि होने से भू-जल पुनर्भरण संभव नहीं
हाल ही में IIT गांधीनगर की एक टीम द्वारा एक अध्ययन गर्म होती जलवायु के कारण भू-जल भंडारण की परिवर्तनशीलता को समझने के लिए किया गया था।
इसमें यह निष्कर्ष निकलकर सामने आया कि, केवल वर्षा में वृद्धि होने से भू-जल पुनर्भरण में मदद नहीं मिलेगी ।
अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष:
- गर्म होती जलवायु से हाइड्रोक्लाइमेट (जल संबंधी जलवायु) से संबंधित चरम घटनाओं (जैसे- बाढ़ और सूखे) की बारंबारता में वृद्धि होगी ।
- जलवायु के गर्म होने से वाष्पोत्सर्जन में बढ़ोतरी होगी । इस कारण भू-जल के पुनर्भरण के लिए पानी की उपलब्धता सीमित हो जाएगी।
- जलवायु के गर्म होने से उत्तर भारत में होने वाली ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षा की मात्रा 6–8% तक बढ़ जाएगी।
- सिंधु – गंगा के मैदान में गहरे जलभृतों से भू-जल की निकासी की जाती है। इस कारण वर्षा में वृद्धि के बावजूद भी भू-जल की रिकवरी करना कठिन हो जाएगा ।
- विश्व बैंक के अनुसार, भारत विश्व में भू-जल का सर्वाधिक उपयोग करने वाला देश है। भू-जल देश की पेयजल – आवश्यकता की लगभग 80% और सिंचाई के लिए दो-तिहाई जल की मांग की पूर्ति करता है।
- केंद्रीय भू-जल बोर्ड के अनुसार लगभग 14% भू-जल ब्लॉक्स का अत्यधिक दोहन किया गया है। साथ ही, 4% गंभीर स्थिति में हैं ।
भू-जल प्रबंधन के लिए किए गए उपाय:
- जल शक्ति मंत्रालय ने भू-जल निकासी के विनियमन और नियंत्रण के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
- भू-जल के प्रभावी प्रबंधन और विनियमन के लिए अटल भू-जल योजना तथा राष्ट्रीय जलभृत प्रबंधन परियोजना जैसी पहलें शुरू की गई हैं।
- भारत-भूजल संसाधन आकलन प्रणाली (IN-GRES) सॉफ्टवेयर का उपयोग किया जा रहा है।
- भू-जल स्तर की निगरानी के लिए मोबाइल एप्लिकेशन ‘जलदूत’ का उपयोग किया जा रहा है ।
- जल उपयोग दक्षता में सुधार के लिए प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) के तहत प्रति बूंद अधिक फसल घटक की शुरुआत की गई है।
स्रोत – द हिन्दू