हाल ही में मद्रास उच्च न्यायालय (HC) ने वन्नियार समुदाय के लिए निर्धारित 10.5 प्रतिशत कोटा रद्द किया है।
उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु में अति पिछड़े समुदाय (Most Backward Community: MBC) वन्नियार को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए प्रदान किए गए 10.5 प्रतिशत आरक्षण को असंवैधानिक घोषित करते हुए रद्द कर दिया है।
तमिलनाडु में 69% आरक्षण को तीन खंडों में बांटा गया है –
पिछड़ा वर्गः 50% (252 जातियों के लिए गैर-मुस्लिम कोटा 26.5%, तथा मुस्लिम कोटा 5%)।
MBC: 20 (वन्नियारों के लिए 10.5%, 68 विमुक्त समुदायों के लिए 7% और अन्य 41 जातियों के लिए 2.5%)
अनुसूचित जाति: 18% (अरुंथथियार 3.5%) और अनुसूचित जनजाति 1%
HC के निर्णय के प्रमुख निष्कर्षः
- यह कानून भारत के संविधान के अनुच्छेद 15, 16 और 29 के प्रावधानों का उल्लंघन करता है, क्योंकि यह वन्नियार को एक पृथक जाति के रूप में वर्गीकृत करता था।
- ध्यातव्य है कि इससे पूर्व, उच्चतम न्यायालय ने इंद्रा साहनी वाद में यह निर्णय दिया था कि केवल जाति ही आरक्षण का मानदंड नहीं हो सकती।
- राज्य ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग से परामर्श करने के पश्चात् आरक्षण को संशोधित करने का नीतिगत निर्णय नहीं लिया था, जैसा कि अनुच्छेद 338B द्वारा अधिदेशित है।
- इसके अतिरिक्त, आरक्षण का उप-वर्गीकरण MBC के भीतर वन्नियारों के पिछड़ेपन पर किसी भी मात्रात्मक आंकड़ों के बिना किया गया था।
इंदिरा साहनी वाद में निर्धारित की गई आरक्षण की शर्ते–
- सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग को आरक्षण।
- ऊर्ध्वाधर आरक्षण पर 50% की सीमा।
- क्रीमीलेयर को पिछड़ा वर्ग से पृथक करना।
- पदोन्नति में आरक्षण नहीं होना चाहिए।
स्रोत – द हिन्दू