लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (RPA) में संशोधन
हाल ही में, मुख्य चुनाव आयुक्त ने उम्मीदवारों के एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ने पर रोक लगाने के लिए लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (RPA) में संशोधन के लिए फिर से नए प्रयास शुरू किए हैं।
- इस प्रकार चुनाव आयोग का मत है कि उम्मीदवार केवल एक निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ें।
- आयोग के अनुसार एक निर्वाचन क्षेत्र को रखने और दूसरे को रिक्त करने के बाद उपचुनाव के लिए बाध्य करने वालों पर भारी जुर्माना लगाने के एक विकल्प पर विचार किया जाना चाहिए।
- लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 33(7) के अनुसार, एक उम्मीदवार अधिकतम दो निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ सकता है।
- वर्ष 1996 तक दो से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ने की अनुमति दी गई थी। बाद में इस अधिनियम में संशोधन कर केवल दो निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा निर्धारित कर दी गई थी।
मौजूदा प्रावधानों से जुड़ी चिंताएं:
RPA की धारा 70 उम्मीदवारों को लोकसभा/ राज्य विधानसभा में दो निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने से रोकती है। इसका अर्थ है कि, यदि कोई उम्मीदवार दोनों निर्वाचन क्षेत्रों में जीत हासिल करता है, तो उसे कानूनी रूप से किसी एक सीट को खाली करना अनिवार्य है।
सरकारी कोष पर दबाव: दूसरे निर्वाचन क्षेत्र में जहां सीट खाली की गई है, आम चुनाव के तुरंत बाद उपचुनाव प्रक्रिया स्वतः शुरू हो जाती है।
मतदाता पर नकारात्मक प्रभावः दोबारा मतदान मतदाताओं में थकान (यात्रा, यात्रा लागत आदि) का कारण बनता है। इससे वे चुनावी प्रक्रिया में रुचि खो देते हैं।
दिनेश गोस्वामी समिति की रिपोर्ट (1990) और चुनाव सुधार पर विधि आयोग की 170वीं रिपोर्ट (1999) में भी एक उम्मीदवार को एक ही निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने तक सीमित करने की सिफारिशें की गई थीं।
कानून और न्याय मंत्रालय का विधान विभाग, चुनाव आयोग से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिए सरकार में नोडल एजेंसी है।
स्रोत – द हिंदू