लेमरू हाथी अभ्यारण्य
लेमरू हाथी अभ्यारण्य
हाल ही में छत्तीसगढ़ सरकार ने लेमरू हाथी रिज़र्व क्षेत्र को 1,995 वर्ग कि.मी. से घटाकर 450 वर्ग किमी. तक रखने का प्रस्ताव दिया है। इस वजह से लेमरू हाथी अभ्यारण्य के मुद्दे पर विवाद उत्पन्न हो गया है।
विदित ही कि लेमरू हाथी अभ्यारण्य को छत्तीसगढ़ में स्थापित किया जाना है। इसके लिए इसे वर्ष 2005 में प्रस्तावित किया गया था और वर्ष 2007 में केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदन प्रदान किया गया।
वर्ष 2007 में केंद्र सरकार ने 450 वर्ग किमी. वन्य क्षेत्र में लेमरू हाथी रिज़र्व के निर्माण की अनुमति दी तथा वर्ष 2019 में राज्य सरकार ने इस क्षेत्र को 1,995 वर्ग किमी. तक विस्तारित करने का फैसला किया।
प्रमुख बिंदु
- यह अभयारण्य छत्तीसगढ़ के कोरबा ज़िले में स्थित है।
- अभयारण्य का लक्ष्य इस क्षेत्र में हाथियों के ओडिशा और झारखंड से छत्तीसगढ़ की ओर जाने पर होने वाले ‘मानव-वन्यजीव संघर्ष’ को रोकना एवं संपत्ति के विनाश को कम करना है।
- इससे पहले अक्तूबर 2020 में राज्य सरकार द्वारा वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 (WLPA) की धारा 36A के अंतर्गत रिज़र्व (संरक्षित क्षेत्र/ रिज़र्व) को अधिसूचित किया गया था।
- अधिनियम की धारा 36A में एक विशेष प्रावधान है जो संघ सरकार को संरक्षित क्षेत्र अथवा रिज़र्व क्षेत्र के रूप में अधिसूचित की जाने वाली भूमि के केंद्र से संबंधित क्षेत्रों के मामले में अधिसूचना की प्रक्रिया अधिकार प्रदान करता है।
- विदित हो कि ,हाथी रिज़र्व वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 (WLPA) के तहत स्वीकृत नहीं हैं।
रिज़र्व क्षेत्र को कम करने का कारण:
- रिज़र्व के अंतर्गत प्रस्तावित क्षेत्र हसदेव अरण्य जंगलों का एक भाग है, जो एक अधिक विविधतापूर्ण बायो-ज़ोन है, जो कोयले के भंडार में भी समृद्ध है।
- सरकार का कहना है कि, यदि प्रस्तावित रिजर्व के क्षेत्र को कम नहीं किए गया तो, इसमें स्थित कई कोयला खदानें अनुपयोगी हो जाएंगी।
- इस क्षेत्र में 22 कोयला खदानों अथवा ब्लॉकों में से सात को पहले ही आवंटित किया जा चुका है, जबकि 3 में उत्खनन कार्य जारी है तथा अन्य 4 में उत्खनन की प्रक्रिया की दिशा में कार्यरत हैं।
रिज़र्व का महत्त्व:
- केवल उत्तरी छत्तीसगढ़ में ही 240 से अधिक हाथियों का वास है। पिछले 20 वर्षों में राज्य में 150 से अधिक हाथियों की मृत्यु हुई है, जिसमें 16 हाथियों की मौत जून से अक्तूबर 2020 के बीच हुई है।
- छत्तीसगढ़ में पाए जाने वाले हाथी अपेक्षाकृत नए हैं। हाथियों ने वर्ष1990 में अविभाजित मध्य प्रदेश में विचरण प्रारम्भ किया।
- जबकि मध्य प्रदेश में झारखंड से आने वाले हाथियों के विचरण पर अंकुश लगाने की नीति थी। छत्तीसगढ़ के गठन के पश्चात औपचारिक नीति के अभाव के कारण हाथियों को राज्य के उत्तर और मध्य भागों में एक गलियारे के रूप में उपयोग करने को अनुमति प्रदान प्रदान की गई।
- चूँकि यह जानवर अपेक्षाकृत नए थे, इसलिये मानव-पशु संघर्ष तब प्रारंभ हुआ जब हाथी भोजन की तलाश में बसे हुए क्षेत्रों में भटकने लगे।
छत्तीसगढ़ में अन्य संरक्षित क्षेत्र:
- अचानकमार टाइगर रिज़र्व।
- इंद्रावती टाइगर रिज़र्व।
- सीतानदी-उदंती टाइगर रिज़र्व।
- कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान।
- बादलखोल तमोर पिंगला हाथी अभयारण्य।
हाथी के बारे में
हाथी एक कीस्टोन प्रजाति (keystone species) है। एशियाई महाद्वीप में हाथी की कुल तीन उप-प्रजातियाँ पाई जाती हैं- भारतीय, सुमात्रन और श्रीलंकाई। भारतीय हाथियों की संख्या और रेंज अत्यधिक व्यापक है।
भारतीय हाथियों की संरक्षण स्थिति:
हाथियों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची-I में रखा गया है । इसके अलावा इसे IUCN की रेड लिस्ट के अंतर्गत लुप्तप्राय (Endangered) श्रेणी में रखा गया है।
हाथियों के संरक्षण के लिये भारत की पहलें:
- गज यात्रा (GajYatra): यह हाथियों की रक्षा के लिये प्रारंभ किया गया एक राष्ट्रव्यापी अभियान है। इसे वर्ष 2017 में विश्व हाथी दिवस (World Elephant Day) के अवसर शुरू किया गया था।
- प्रोजेक्ट एलीफेंट (Project Elephant): यह एक केंद्र द्वारा संचालित योजना है।इसे वर्ष 1992 में आरम्भ किया गया था।
- सीड्स बम या बॉल (Seed Bombs): हाल ही में ओडिशा के अथागढ़ वन प्रभाग ने मानव-हाथी संघर्ष को रोकने के लिये जंगली हाथियों के लिए खाद्य भंडार को समृद्ध करने हेतु विभिन्न आरक्षित वन क्षेत्रों के अंदर ‘बीज गेंदों’ का प्रयोग प्रारंभ कर दिया है।
हाथियों के संरक्षण हेतु अंतर्राष्ट्रीय पहल:
हाथियों की अवैध हत्या की निगरानी (Monitoring of Illegal Killing of Elephants- MIKE) हेतु कार्यक्रम:
इसे CITES के पक्षकारों के सम्मेलन (Conference Of Parties- COP) द्वारा चलाया जाता है। इसकी शुरुआत वर्ष 2003 दक्षिण एशिया में निम्नलिखित उद्देश्यों के साथ की गई थी:
- हाथियों के अवैध शिकार के स्तर और प्रवृत्ति को मापना।
- इन प्रवृत्तियों में समय के साथ हुए परिवर्तन का निर्धारण करना।
स्रोत:द हिन्दू
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