सरकार वरिष्ठ अधिकारियों की लेटरल एंट्री (पार्श्व प्रवेश) नियुक्ति
हाल ही में केंद्र सरकार लेटरल एंट्री (पार्श्व प्रवेश) मोड के माध्यम से वरिष्ठ अधिकारियों की नियुक्ति करेगी।
- भारत सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DoPT) ने संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) से कहा है कि वह लेटरल एंट्री के तहत निजी क्षेत्रक से वरिष्ठ अधिकारियों की नियुक्ति करे।
- लेटरल एंट्री को सरकारी विभागों में निजी क्षेत्रक से विशेषज्ञों की नियुक्ति के रूप में जाना जाता है।
- लेटरल एंट्री के माध्यम से नियुक्ति की प्रक्रिया 2018 में शुरू हुई थी। अब चौथी लेटरल एंट्री की शुरुआत हो रही है।
- सुरिंदर नाथ समिति (2003), होता समिति (2004) और द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (2008) ने भी लेटरल एंट्री के माध्यम से वरिष्ठ अधिकारियों की नियुक्ति के विचार का समर्थन किया था ।
- नीति आयोग ने भी अपने तीन वर्षीय एक्शन एजेंडा (2017-2020 ) में केंद्र सरकार में मध्यम और वरिष्ठ प्रबंधन स्तर पर ऐसे कर्मियों को शामिल करने की सिफारिश की थी ।
लेटरल एंट्री के पक्ष में तर्क:
- इससे सरकार को नई प्रतिभाओं के साथ – साथ विशेषज्ञ कर्मी भी उपलब्ध हो जाते हैं और इस तरह दोहरे उद्देश्य की पूर्ति हो जाती है।
- निजी क्षेत्रक के विशेषज्ञों को कई क्षेत्रकों में कार्य कर चुके स्थायी सिविल सेवकों के साथ कार्य करने का अवसर प्राप्त होता है। इससे प्रशासन में बेहतर परिणाम प्राप्त होते हैं ।
- वर्तमान में गवर्नेस के डिजिटलीकृत होने, वित्तीय धोखाधड़ी और साइबर अपराध के बढ़ने जैसे कारकों की वजह से गवर्नेस प्रणाली की जटिलता बढ़ती जा रही है । लेटरल एंट्री से इस जटिलता से निपटने में मदद मिलेगी ।
- लेटरल एंट्री के माध्यम से विशेषज्ञों की नियुक्ति से गवर्नेस के भीतर प्रतिस्पर्धा की भावना बढ़ेगी और इससे सिविल सेवकों की दक्षता में वृद्धि होगी ।
लेटरल एंट्री के विपक्ष में तर्क:
- इसे नौकरशाही की कार्य संस्कृति के साथ समायोजित करने में कठिनाई उत्पन्न होती है ।
- अल्प सेवाकाल की वजह से जवाबदेही तय करने में समस्या आती है।
- लेटरल एंट्री माध्यम से सिविल सेवा में आये लोगों के पास फील्ड में कार्य करने का कम अनुभव होता है।
स्रोत – द हिन्दू