लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर (LHC) के तहत जारी प्रयोगों में दुर्लभ
हाल ही में LHC का संचालन यूरोपियन ऑर्गनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (CERN) कर रहा है।
LHC में किए जा रहे एक प्रयोग के दौरान एक दुर्लभ प्रक्रिया का पहला प्रमाण मिला है। इस प्रक्रिया में हिग्स बोसोन का क्षय Z बोसॉन और फोटॉन में हुआ ।
यह क्षय ऐसे कणों के अस्तित्व का अप्रत्यक्ष प्रमाण प्रदान कर सकता है, जिनका पूर्वानुमान “स्टैंडर्ड मॉडल ऑफ पार्टिकल फिजिक्स (SMPP)” में भी नहीं किया गया था।
स्टैंडर्ड मॉडल कणों, क्षेत्रों (Fields ) और उन्हें नियंत्रित करने वाले मौलिक बलों का सिद्धांत है। वर्तमान में, यह मॉडल कण भौतिकी (Particle physics) की मूलभूत अवधारणाओं की व्याख्या करने वाला सबसे सटीक सिद्धांत है ।
इसमें 12 मौलिक पदार्थ (मैटर) कण शामिल हैं, जिन्हें क्वार्क (जो प्रोटॉन और न्यूट्रॉन बनाते हैं) तथा लेप्टॉन (जिसमें इलेक्ट्रॉन शामिल होते हैं) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
यह इस सिद्धांत की व्याख्या करता है कि कैसे बोसॉन के एक व्यापक समूह से संबंधित ‘बल धारण करने वाले कण, क्वार्क और लेप्टॉन को प्रभावित करते हैं ।
इस मॉडल में पदार्थ के व्यवहार को नियंत्रित करने वाले तीन बलों को शामिल किया गया है। ये बल हैं: विद्युत-चुंबकीय बल (Electromagnetism), प्रबल बल (Strong force) और कमजोर बल (Weak force) ।
वर्तमान में, स्टैंडर्ड मॉडल के तहत गुरुत्वाकर्षण बल को शामिल नहीं किया गया है।
SMPP मॉडल की निम्नलिखित सीमाएं हैं:
यह मॉडल इस तथ्य की व्याख्या नहीं कर पाता है कि गुरुत्व बल कैसे संचलन करता है?
यह मैटर और एंटी-मैटर के बीच की विषमता को नहीं समझा पाता है;
यह डार्क मैटर की संरचना की व्याख्या नहीं कर पाता है और;
यह इस तथ्य की भी व्याख्या करने में असमर्थ है कि क्यों उप-परमाणु कणों का द्रव्यमान उनके संघटकों के योग से अधिक होता है ?
CERN के बारे में
CERN प्रयोगशाला की स्थापना 1954 में की गई थी। यह जिनेवा के पास फ्रांस- स्विट्जरलैंड की सीमा पर स्थित है। इसमें 23 सदस्य देश शामिल हैं। भारत एक एसोसिएट सदस्य देश के रूप में इस प्रयोग में शामिल है।
लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर (LHC) के बारे में
यह अब तक का सबसे शक्तिशाली कण त्वरक (Particle Accelerator) है। यह प्रोटॉन या आयनों को लगभग प्रकाश की गति से गतिमान करने में सक्षम है।
वर्ष 2012 में, LHC ने हिग्स बोसॉन कणों की खोज की थी । हिग्स बोसॉन कण यह समझने में हमारी मदद करेगा कि मूलभूत कणों में द्रव्यमान क्यों होता है।
स्रोत – इंडियन एक्सप्रेस