जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में कम तीव्रता के कई भूकंप दर्ज
हाल ही में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में 24 घंटे के भीतर कम तीव्रता के कई भूकंप दर्ज किए गए हैं। ज्ञातव्य हो कि हिमालय की भूवैज्ञानिक संरचना इस क्षेत्र को भूकंप के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील बनाती है।
- इसकी वजह यह है कि इसका भूविज्ञान मुख्य रूप से यूरेशियन प्लेट के साथ भारतीय टेक्टोनिक (विवर्तनिक) प्लेट की टक्कर से निर्धारित होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार यह टक्कर होना अभी भी जारी है।
- भारतीय प्लेट उत्तर तथा उत्तर-पूर्व दिशा में यूरेशियन प्लेट के नीचे (Subduction) जा रही है।
हिमालय का भूविज्ञान इसके दक्षिणी भाग में निम्नलिखित तीन प्रमुख टेक्टोनिक यूनिट्स से युक्त है:
- मेन सेंट्रल थ्रस्ट (MCT)
- मेन बाउंड्री थ्रस्ट (MBT)
- हिमालयन फ्रंटल थ्रस्ट (HFT) या मेन फ्रंटल थ्रस्ट (MFT)।
इनमें से MCT सबसे ऊंचा और सबसे पुराना है। यह सबसे उत्तर दिशा में नीचे की ओर भ्रंश (फॉल्ट) है। MCT महान और लघु हिमालय के बीच टेक्टोनिक संपर्क बनाता है। MBT, लघु हिमालय और शिवालिक हिमालय को अलग करता है। HFT सबसे दक्षिणी और सबसे नया थ्रस्ट है।
- ये तीनों भ्रंश ‘बेसल डिटैचमेंट प्लेन’ के साथ जुड़ते हैं। इसे भूभौतिकीय भाषा में ‘डीकोलमेंट’ (Decollement) कहा जाता है। इस प्लेन को ही ‘मेन हिमालयन थ्रस्ट’ (MHT) कहते हैं ।
- वर्तमान युग में MCT की तुलना में MBT और HFT, दोनों भ्रंशों को अधिक सक्रिय माना जाता है।
- मध्य हिमालय में लगभग 700 किलोमीटर का खंड (Stretch) है, जहां MFT ने कई शताब्दियों तक विखंडन का कोई संकेत नहीं दिया है। इसे ‘सेंट्रल सिस्मिक गैप’ कहा जाता है। सिस्मिक गैप क्षेत्र भविष्य में अधिक तीव्रता के भूकंपों के लिए उच्च जोखिम वाले क्षेत्र हैं।
स्रोत – इंडियन एक्सप्रेस