लक्षद्वीप के कानूनी अधिकार क्षेत्र का स्थानांतरण
हाल ही में, लक्षद्वीप प्रशासन ने अपने ‘कानूनी क्षेत्राधिकार’ (legal jurisdiction) को केरल उच्च न्यायालय से स्थानांतरित करके कर्नाटक उच्च न्यायालय में स्थापित करने के विचार हेतु प्रस्ताव पेश किया है।
पृष्ठभूमि:
- लक्षद्वीप के नए प्रशासक ने हाल ही में लक्षद्वीप के लिए बहुतसे फैसले लिए जिनके खिलाफ केरल उच्च न्यायालय के समक्ष कई मुकदमे दायर किए गए थे इसके बाद से ही , प्रशासन द्वारा इस प्रस्ताव लाया जा रहा है।
- लक्षद्वीप प्रशासक के इन निर्णयों में मुख्य रूप से , कोविड-उपयुक्त व्यवहार के लिए मानक संचालन प्रक्रियाओं को संशोधित करना, “गुंडा अधिनियम” की शुरूआत और सड़कों की चौड़ाई करने के लिए मछुआरों की झोपड़ियों को ध्वस्त करना आदि शामिल थे।
उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार को स्थानांतरित करने संबंधी प्रक्रिया:
- विदित हो कि संसद द्वारा पारित अधिनियम के द्वारा ही किसी उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार को स्थानांतरित किया जा सकता है।
- संविधान के अनुच्छेद 241के तहत ‘संसद विधि द्वारा, किसी संघ राज्यक्षेत्र के लिए उच्च न्यायालय का निर्माण कर सकती है या ऐसे संघ राज्यक्षेत्र में किसी न्यायालय को, इस संविधान के सभी या किन्हीं प्रयोजनों के लिए, उच्च न्यायालय घोषित कर सकती है।’
- इसी अनुच्छेद के उपबंध चार में उल्लेख है कि, ‘इस अनुच्छेद की किसी बात से किसी राज्य के उच्च न्यायालय की अधिकारिता का किसी संघ राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग पर विस्तार करने या उससे अपवर्जन करने की संसद की शक्ति का अल्पीकरण नहीं होगा।
आगे की चुनौतियां:
- वर्तमान में, लक्षद्वीप, केरल उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आता है। साथ ही , मलयालम, केरल और लक्षद्वीप, दोनों में बोली और लिखी जाने वाली भाषा है।
- उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को स्थानांतरित करने से लक्षद्वीप की पूरी न्यायिक व्यवस्था परिवर्तित हो जाएगी।इससे भाषा का संबंध टूटेगा।
- साथ ही, केरल उच्च न्यायालय, लक्षद्वीप से मात्र 400 किलोमीटर की दूरी पर है जबकि कर्नाटक उच्च न्यायालय की दूरी 1,000 किलोमीटर से अधिक है और कोई सीधा संपर्क मार्ग भी नहीं है।
- इससे राजकोष पर अतिरिक्त दबाव पड़ेगा, क्योंकि वर्तमान में विचाराधीन सभी मामलों की फिर से सुनवाई करनी होगी।
स्रोत – द हिन्दू