रुपया मूल्यहास (Depreciation)
हाल ही में रुपया अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंचा तथा विदेशी मुद्रा भंडार घटकर 600 अरब डॉलर के नीचे आ गया है ।
रुपया 76.93 प्रति अमेरिकी डॉलर पर बंद होने से पहले फिर से अपने सर्वकालिक निचले स्तर पर आ गया है। इसके लिए अलग-अलग कारक जिम्मेदार थे।
रुपया मूल्यहास (Depreciation) भारतीय मुद्रा के मूल्य में गिरावट को कहते हैं। यह गिरावट अन्य मुद्राओं की तुलना में उसकी विनिमय दर के संदर्भ में होती है।
भारत, वर्ष 1993 से एक प्रबंधित अस्थिर (फ्लोटिंग) दर का पालन कर रहा है। इसलिए रुपये का मूल्यहास या अधिमूल्यन (appreciation)} अन्य मुद्राओं की तुलना में निम्नलिखित पर निर्भर करता है: – विदेशी मुद्रा बाजार में इसकी आपूर्ति और मांग।
गिरावट (या वृद्धि) को रोकने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की कार्रवाई:
अन्य मुद्राओं की खरीद और बिक्री के माध्यम से या पूंजी प्रवाह विनियमों के माध्यम से बाजार में अस्थिरता एवं अटकलों को कम करना।
हाल ही में रुपये में गिरावट हेतु उत्तरदायी कारण–
- रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण कच्चे तेल की कीमतों और अन्य वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि हो गयी है। केंद्रीय बैंकों ने बढ़ती मुद्रास्फीति से निपटने के लिए अपनी मौद्रिक नीतियों में परिवर्तन किया है। उदाहरण के लिए विशेष रूप से अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने अपनी ब्याज दरों में 50 आधार अंकों (bps) की वृद्धि की है।
- विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से निकलकर किसी अन्य सुरक्षित निवेश गंतव्य का रुख कर रहे हैं।
- घरेलू कारकों में चालू खाता घाटे में वृद्धि, मुद्रास्फीति में वृद्धि आदि प्रमुख हैं।
- रुपये के मूल्य में गिरावट का प्रभाव
- रुपये में गिरावट को रोकने के RBI के प्रयासों के कारण विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आयी है।
- व्यापार घाटे में वृद्धि से चालू खाता घाटा एवं भुगतान संतुलन संकट में और बढ़ोतरी होगी।
- बढ़ती मुद्रास्फीति से निपटने के लिए RBI ब्याज दरों में बढ़ोतरी करेगा।
स्रोत –द हिन्दू