प्रश्न – राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में पूंजीपतियों की भूमिका का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। – 19 July2021
उत्तर –
पूंजीपति वर्ग में बड़े-बड़े व्यापारिक समूहों के मालिकों से लेकर स्थानीय व्यापारी तक शामिल थे।संग्राम के प्रति पूंजीपतियों की भूमिका समय के साथ बदलती रही।
राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में पूंजीपतियों की भूमिका:
- स्वदेशी आंदोलन के दौरान, पूंजीपतियों ने बड़े पैमाने पर आंदोलन का विरोध किया।
- असहयोग आंदोलन के दौरान, कुछ पूंजीपतियों ने आंदोलन का समर्थन किया। लेकिन, पुरुषोत्तम दास सहितपूंजीपतियों के एक भाग ने असहयोग आंदोलन का विरोध किया था।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान, पूंजीपतियों ने बड़े पैमाने पर आंदोलन का समर्थन किया। फिर भी आंदोलन में उनका योगदान राष्ट्रीय आंदोलन को प्रभावी बनाने के लिए पर्याप्त नहीं था।
- पूंजीपतियों ने जन हिंसक क्रांति का विरोध किया, क्योंकि ऐसी क्रांति समाजवाद के लिए मार्ग प्रशस्त करेगीऔर इससे भारत में पूंजीवाद के अस्तित्व को खतरा होगा।
- पूंजीपति सरकार से सीधे तौर पर शत्रुता करने के लिए तैयार नहीं थे, क्योंकि सरकार से शत्रुता पूंजीपति वर्गके हित में नहीं था। हालांकिउन्होंने कांग्रेस को वित्तीय सहायता प्रदान की थी।
- भारतीय पूंजीपति, संवैधानिक भागीदारी के पक्ष में थे, जैसे कि कार्यकारी और विधायी परिषदों में महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति, क्योंकि इससे भारतीयों को अर्थव्यवस्था में सुधार करने का मौका मिलता था।
निष्कर्ष:
विदेशी पूँजी के अवनतशील नियंत्रण, युद्ध द्वारा आरोपित आयात-प्रतिस्थापन और विदेशी व्यापार में बदलाव की वजह से खाली हुए स्थान पर भारतीय पूंजीवाद का उदय हुआ। भारतीय पूंजीपतियों के वर्ग-संगठन फेडरेशन ऑफ इंडियन चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) ने निश्चित ढंग से स्पष्ट किया कि साम्राज्यवाद आर्थिक और राजनीतिक तरीके से उसके विकास को प्रभावित कर रहा है। उपनिवेशवाद की इस सुस्पष्ट समीक्षा की वजह से ही भारतीय पूँजीपतियों ने राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने की नीति बनायी।