राष्ट्रीय प्रतिरक्षण दिवस जिसे सामान्यतया प्लस पोलियो प्रतिरक्षण कार्यक्रम के रूप में भी जाना जाता है, को राष्ट्रीय पोलियो प्रतिरक्षण अभियान वर्ष 2021 के साथ पूरे देश में प्रारम्भ किया गया है।
- वर्तमान में, केवल टाइप-1 वाइल्ड पोलियो वायरस प्रचलन में है,अतः इन अभियानों में 0-5 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों को इसके लिए पोलियो ड्रॉप पिलाई जाती है।भारत में वर्ष 1995 में प्रारम्भ किया गया था। इसे प्रत्येक वर्ष के शुरुआती महीनों में दो बार आयोजित किया जाता है।
पोलियो:
- अक्सर पोलियो या ‘पोलियोमेलाइटिस’ भी कहा जाता है। इसका एक नाम बहुतृषा भी है। यह एक विषाणु-जनित बेहद खतरनाक संक्रामक रोग है। यह आमतौर पर किसी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संक्रमित मल या भोजन के माध्यम से फैलता है।
- शुरुआती लक्षण: अधिकांश मामलों में रोगी को इसके लक्षणों का पता नहीं चल पाता है। इसके लक्षण इस प्रकार हैं- फ्लू जैसा लक्षण, पेट का दर्द, अतिसार (डायरिया), उल्टी, गले में दर्द, हल्का बुखार, सिर दर्द।
- खतरनाक पोलियो वायरस के 3 उपभेदों (टाइप- 1, टाइप- 2 और टाइप- 3) में से पोलियो वायरस टाइप- 2 को 1999 में खत्म कर दिया गया था। नवंबर, 2012 में नाइजीरिया में दर्ज आखिरी मामले के बाद पोलियो वायरस टाइप- 3 का कोई मामला नहीं मिला है।
- लड़कियों से अधिक यह लड़कों में हुआ करता है तथा वसंत एवं ग्रीष्मऋतु में इसकी बहुलता हो जाती है।
- जिन बालकों को कम अवस्था में ही टाँसिल का आपरेशन कराना पड़ जाता है, उन्हें यह रोग होने की संभावना और अधिक होती है।
पोलियो वायरस के विरुद्ध दो प्रकार के टीकाकरण उपलब्ध हैं:
- निष्क्रिय पोलियोवायरस वैक्सीन(आईपीवी)
- आईपीवी को 1955 में डॉ. जोनास साल्क द्वारा विकसित किया गया था।
- आईपीवी इंजेक्शन द्वारा दिया जाता है। इसमें वायरस के एक निष्क्रिय (मृत) रूप का उपयोग किया जाता है जिसमें पोलियो का कारण बनने की क्षमता नहीं होती है।
- आईपीवी मुख्य रूप से उन देशों में उपयोग किया जाता है, जहां पर पोलियो वायरस पहले ही समाप्त हो चुका है।
- चूँकि ओपीवी एक जीवित पोलियो वायरस से बना होता है, इसलिए जीवित वायरस के टीके से पोलियो के खिलाफ सुरक्षा अत्यधिक प्रभावी होने के बावजूद प्रति वर्ष पोलियो के कुछ मामलों का कारण पोलियो ड्राप या ओरल पोलियो वैक्सीन होते थे।
- अमेरिका में सन 2000 में निष्क्रिय पोलियो टीके (आईपीवी) का उपयोग शुरू हो गया। भारत ने नवंबर,2015 से ओरल पोलियो वैक्सीन या पोलियो ड्राप (ओपीवी) के साथ अपने नियमित टीकाकरण कार्यक्रम में इंजेक्शन योग्य पोलियो टीका या इनएक्टिवेटेड पोलियो वैक्सीन (आईपीवी) को भी पेश किया है।
- ओरल पोलियो वैक्सीन (ओपीवी)
- ओपीवी (मुख द्वारा ग्रहण की जाने वाली वैक्सीन) में एक जीवित, क्षीण (कमजोर) वैक्सीन-वायरस होता है। जब एक बच्चे को टीका लगाया जाता है, तो कमजोर टीका-वायरस एक सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को प्रेरित करता है।
- जिन लोगों को ओपीवी दिया जाता है, वे टीकाकरण के कुछ समय बाद तक इस वायरस का उत्सर्जन करते हैं और दूसरों को संक्रमित कर सकते हैं, विशेष रूप से उन्हें जिन्हें टीका नहीं लगाया गया हो।
- पोलियोवायरस के विभिन्न संयोजनों के आधार पर ओपीवी तीन प्रकार के होते हैं- मोनोवैलेंट ओपीवी, बाईवैलेंट ओपीवीएवं ट्राईवैलेंट ओपीवी।
- 2015 में WPV2 के उन्मूलन की घोषणा के बाद दुनिया भर में ट्राईवैलेंट ओपीवीकी जगह बाईवैलेंट ओपीवीका प्रयोग किया जा रहा है।
- कुछ मामलों में, यह वैक्सीन-वायरस प्रतिकृति के दौरान आनुवंशिक रूप से बदल जाता है। इसे वैक्सीन-व्युत्पन्न पोलियो वायरस कहा जाता है। अत्यंत दुर्लभ परिस्थितियों में ओपीवी वैक्सीन-व्युत्पन्न पोलियो का भी कारण बन सकते हैं।
- वर्ष 2014 में, पोलियो के शून्य मामले दर्ज होने के तीन वर्ष पश्चात भारत को पोलियो मुक्त घोषित किया गया था। भारत से उन्मूलित किए जा चुके अन्य रोग: याज (yaws), गिनी कृमि, चेचक, मातृ और नवजात शिशु टेटनस।
स्रोत – पीआईबी