राष्ट्रीय ई-कॉमर्स नीति को जल्द-से-जल्द अधिसूचित
हाल ही में वाणिज्य पर संसदीय स्थायी समिति ने सरकार से राष्ट्रीय ई-कॉमर्स नीति को जल्द-से-जल्द अधिसूचित करने के लिए कहा है।
समिति ने ‘भारत में ई-कॉमर्स का संवर्धन और विनियमन’ शीर्षक से रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में भारत में ई-कॉमर्स के प्रति एक समर्पित नीति के अभाव को रेखांकित किया गया है।
इसके परिणामस्वरूप, इस क्षेत्रक का खंडित और अप्रभावी विनियमन हुआ है। साथ ही, इस क्षेत्रक में एक रणनीतिक शून्य की स्थिति भी पैदा हुई है।
समिति ने उल्लेख किया है कि 2019 में प्रस्तुत किया गया ई-कॉमर्स नीति का मसौदा अभी भी अंतर-मंत्रालयी परामर्श चरण में है।
ई-कॉमर्स या इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स का अर्थ “कंपनियों और व्यक्तियों द्वारा इंटरनेट के माध्यम से वस्तुओं एवं सेवाओं की खरीद व बिक्री” है ।
भारत में ई-कॉमर्स बाजार के 2030 तक 350 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है।
ई-कॉमर्स नीति की आवश्यकता क्यों है:
- मेक इन इंडिया और डिजिटल इंडिया की मौजूदा नीतियों के साथ ई-कॉमर्स क्षेत्रक का समग्र विकास करना, तथा
- अवसंरचना विकास, समरूप विनियमन, निर्यात में वृद्धि आदि लक्ष्य प्राप्त करना ।
ई-कॉमर्स नीति से जुड़ी हुई चिंताएं:
- बहुराष्ट्रीय कंपनियां डेटा स्थानीयकरण का विरोध कर रही हैं;
- ग्रामीण क्षेत्रों में ई-कॉमर्स क्षेत्रक के विकास पर कम ध्यान देना आदि ।
रिपोर्ट में की गई प्रमुख सिफारिशें
- उपभोक्ता—समर्थक विनियामक ढांचे और एक मजबूत शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करके उपभोक्ता अधिकारों तथा निजता की सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए ।
- जालसाजी – रोधी और पायरेसी-रोधी उपायों का कठोर प्रवर्तन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
- उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (DPIIT) को ई-कॉमर्स मूल्य श्रृंखलाओं में विविध आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए एक विशेष कौशल विकास indo रणनीति की रूपरेखा तैयार करनी चाहिए ।
स्रोत – द हिन्दू