राष्ट्रीय आयुष मिशन (NAM) के महत्व और स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली

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Questionराष्ट्रीय आयुष मिशन (NAM) के महत्व पर संक्षेप में चर्चा कीजिए। आयुष को मौजूदा स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में शामिल करने में सामने आने वाली चुनौतियों का वर्णन कीजिए तथा इन चुनौतियों से निपटने के लिए आगे का रास्ता सुझाइए। – 4 December 2021

उत्तरआयुष आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी की भारतीय चिकित्सा पद्धति को संदर्भित करता है।सरकार द्वारा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHCs), सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (CHCs) और जिला अस्पतालों (DHS) में लागत प्रभावी गुणवत्तापूर्ण आयुष सेवाएं प्रदान करने तथा, भारतीय स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में मानवशक्ति की कमी की समस्या का समाधान करने के उद्देश्य के साथ राष्ट्रीय आयुष मिशन आरंभ किया गया है।

महत्व

  • आयुष तक सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित करना: कवरेज बढ़ाने हेतु PHCS, CHCs और DHS पर आयुष सुविधाओं को उपलब्ध कराकर।
  • राज्य स्तर पर संस्थागत क्षमता को सुदृढ़ बनाना: आयुष शैक्षिक संस्थानों, राज्य सरकार की आयुष फार्मेसियों, औषध परीक्षण प्रयोगशालाओं आदि को उन्नत बनाकर।
  • बेहतर कृषि पद्धतियों के माध्यम से औषधीय पौधों की कृषि को बढ़ावा देकर गुणवत्तापूर्ण कच्चे माल की लगातार आपूर्ति सुनिश्चित करना।
  • गुणवत्ता मानकों को बढ़ावा देना: आयुष दवाओं के लिए प्रमाणन तंत्र और उच्च ग्रेड मानकों को अपनाना।

चुनौतियाँ

  • चिकित्सा की प्रत्येक प्रणाली के लिए विशिष्ट दृष्टिकोण: उदाहरण के लिए, एलोपैथिक प्रणाली बायोमेडिकल मॉडल के आधार पर रोगों के निदान से संबंधित है, जबकि आयुर्वेद प्रणाली मुख्य रूप से बीमारी से निपटने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण पर आधारित है।
  • विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों के लिए रोगियों के क्रॉस रेफरल से संबंधित चुनौतियां और विभिन्न प्रणालियों के बीच आधान: कुछ बीमारियों का इलाज आयुर्वेदिक दवाओं से बेहतर होता है, जबकि एलोपैथिक उपचार अन्य बीमारियों के लिए बेहतर होता है।
  • कोई वैज्ञानिक रूप से सिद्ध लाभ नहीं: अधिकांश आयुष दवाओं की अभी तक उनके कथित उपचार गुणों के लिए पुष्टि नहीं की गई है।
  • वैश्विक स्वीकृति का अभाव: वैश्विक नियामक मानकों ने इन पारंपरिक प्रणालियों को उचित रूप से अनुमोदित नहीं किया है। इसलिए, आयुष को मौजूदा स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में शामिल करने से उनकी चोरी और दुरुपयोग में वृद्धि हो सकती है।
  • गुणवत्ता वाले उत्पादों की उपलब्धता खंडित है और पारदर्शी नहीं है: 85% से अधिक औषधीय पौधे वनों से एकत्र किए जाते हैं।
  • व्यवहार में कानूनी प्रावधानों के प्रभावी कार्यान्वयन का अभाव।

आगे की राह:

  • वैज्ञानिक अनुसंधान, प्रकाशन और बेहतर प्रथाओं के विकास के माध्यम से आयुष प्रणालियों की प्रभावकारिता और सुरक्षा से संबंधित मुद्दों का समाधान करना।
  • डिजिटलीकरण को बढ़ावा देना ताकि आयुर्वेद के पारंपरिक ज्ञान को चोरी और दुरुपयोग से बचाया जा सके।
  • गुणवत्ता और उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए आदर्श परिस्थितियों में औषधीय पौधों की खेती के लिए राज्यों द्वारा प्रोत्साहन।
  • भविष्य के चिकित्सकों के शिक्षण और प्रशिक्षण मानकों में सुधार के लिए पारंपरिक स्वास्थ्य कॉलेजों के लिए प्रमाणन प्रणाली।

आयुष प्रथाओं के लिए वैश्विक स्वीकृति प्राप्त करने के लिए आयुष दवाओं, योगों और उपचारों के नैदानिक परीक्षण।

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