राज्य सभा में ऑनलाइन गेमिंग के मुद्दे पर चिंता व्यक्त की गई
हाल ही में राज्य सभा में शून्यकाल के दौरान, इस तथ्य पर प्रकाश डाला गया कि पूर्व कोरोना काल (Pre-Covid) के दौरान, मोबाइल गेमिंग पर व्यतीत किये जाने वाला साप्ताहिक समय 2.5 घंटे था, यह लॉकडाउन की अवधि के दौरान बढ़कर 4 घंटे हो गया था।
ऑनलाइन गेमिंग के खतरे से करोड़ों युवाओं के आदी होने पर भी चिंता प्रकट की गयी।
ऑनलाइन गेम उन खेलों को संदर्भित करता है, जो कंप्यूटर नेटवर्क के माध्यम से किसी न किसी रूप में खेले जाते हैं। इनमें से अधिकतर इंटरनेट के माध्यम से खेले जाते हैं। लूडो किंग्स, रम्मी, पोकर, ड्रीम 11 आदि इसके कुछ उदाहरण हैं।
ऑल इंडिया गेमिंग फेडरेशन के अनुसार वर्ष 2023 तक भारत का ऑनलाइन गेमिंग उद्योग 15,500 करोड़ रुपये होने की उम्मीद है।
संयुक्त राज्य अमेरिका स्थित लाइमलाइट नेटवर्क्स द्वारा वर्ष 2019 में किए गए एक सर्वेक्षण में गेमर की संख्या के मामले में दक्षिण कोरिया के बाद भारत दूसरे स्थान पर था।
गेमिंग डिसऑर्डर के बारे में
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने वर्ष 2018 में गेमिंग डिसऑर्डर को मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति के रूप में वर्गीकृत किया था।
WHO की परिभाषा के अनुसार, जिस व्यक्ति को गेमिंग डिसऑर्डर है, वह कम से कम 12 महीने तक निम्नलिखित लक्षणों को प्रकट करेगाः
- उसकी गेमिंग आदतों पर नियंत्रण की कमी
- अन्य रुचियों और गतिविधियों के ऊपर गेमिंग को प्राथमिकता देना
- इसके नकारात्मक परिणामों के बावजूद गेमिंग को जारी रखना आदि।
- गेमिंग डिसऑर्डर शारीरिक, सामाजिक और भावनात्मक क्षति पहुंचाते हैं। ये नींद, भूख, करियर और सामाजिक जीवन को नुकसान पहुंचाने का कारण भी बनते हैं।
स्रोत – द हिंदू