यह निर्णय राज्य सभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालन विषयक नियम 256 के तहत सरकार द्वारा एक प्रस्ताव प्रस्तुत किए जाने के बाद लिया गया है। यह नियम संसद से किसी सदस्य को निलंबित करने का प्रावधान करता है।
- वर्ष 1962 से 26 सदस्यों (कुछ को कई बार) को निलंबित करने के लिए अतीत में 13 बार इस नियम का उपयोग किया जा चुका है।
- नियम 256 के अनुसार, यदि सभापति आवश्यक समझे तो वह उस सदस्य को निलंबित कर सकता है, जो सभापति के प्राधिकार की उपेक्षा करता है या जो बार-बार और जानबूझकर राज्यसभा की कार्रवाई में बाधा डालकर राज्यसभा के नियमों का दुरुपयोग करता है।
- इस प्रकार नामित सदस्य को शेष सत्र से अनधिक अवधि के लिए निलंबित किया जा सकता है।
- राज्य सभा, किसी भी समय प्रस्ताव किए जाने पर इस तरह के निलंबन को समाप्त करने का संकल्प पारित कर सकती है।
- इसके अतिरिक्त, प्रधान मंत्री ने संसदीय संवीक्षा के मानकों में सुधार के लिए संसद में ‘गुणवत्तापूर्ण वाद-विवाद’ का आह्वान किया था।
रेखांकित किए गए प्रमुख मुद्दों में शामिल हैं:
- संसदीय सत्र की अल्पावधि एक प्रवृत्ति बन गई है।
- विधायिका द्वारा कानूनों की अपर्याप्त संवीक्षा (सरकार ने पिछले सत्र में 10 मिनट में 15 विधेयकों को पारित कराया था)।
स्रोत – द हिन्दू