राज्य सभा के सदस्यों का निर्वाचन
हाल ही में राज्य सभा (RS) सदस्यों के निर्वाचन के लिए कई राज्यों में चुनाव आयोजित किये गए हैं ।
राज्य सभा एक स्थायी सदन है। इसे भंग नहीं किया जा सकता।
राज्य सभा में सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 (वर्तमान में 245) निर्धारित की गई है। इनमें से 238 (वर्तमान में 233) राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित) के प्रतिनिधि हैं। शेष 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किये जाते हैं।
राज्य सभा के एक सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है।
राज्य सभा निर्वाचन:
- इसके एक तिहाई सदस्य प्रत्येक दूसरे वर्ष के बाद सेवानिवृत्त हो जाते हैं। इसका उद्देश्य सदन की निरंतरता सुनिश्चित करना है।
- राज्य सभा में राज्यों के प्रतिनिधि राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं (अनुच्छेद 80 के तहत)।
- राज्यों को सीटें उनकी जनसंख्या के आधार पर आवंटित की जाती हैं।
- चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के माध्यम से एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से होता है।
- एकल संक्रमणीय मत का अर्थ है कि मतदाता अपनी पसंद के क्रम में कितने भी उम्मीदवारों को मत दे सकते हैं। एक उम्मीदवार को जीतने के लिए एक निर्धारित संख्या में पहली वरीयता के मतों की आवश्यकता होती है।
- राज्य सभा चुनावों में खुले मतपत्र की व्यवस्था होती है। हालांकि, यह खुलेपन का एक सीमित रूप है।
- क्रॉस वोटिंग की जांच करने के लिए, किसी राजनीतिक दल का प्रत्येक विधायक अपने चिह्नित मतपत्रों को मतपेटी में डालने से पहले अपने दल के अधिकृत एजेंट को इसे दिखाता है।
- अपने दल के अधिकृत एजेंट के अलावा किसी और को चिह्नित मतपत्र दिखाने से मत अमान्य हो जाता है।
- उपर्युक्त में से कोई नहीं (NOTA) विकल्प राज्य सभा चुनावों में लागू नहीं होता है।
- यदि किसी राजनीतिक दल का सदस्य अपने ही दल के प्रतिनिधि को मत नहीं देता है, तो उसे दलबदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य घोषित नहीं किया जाता है।
राज्यसभा के बारे में अन्य तथ्य:
- अनुच्छेद 80(3) के तहत 12 मनोनीत सदस्यों को साहित्य, विज्ञान, कला आदि मामलों में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव होना चाहिए।
- संविधान की चौथी अनुसूची राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को उनकी जनसंख्या के आधार पर राज्य सभा में सीटों के आवंटन का प्रावधान करती है।
स्रोत –द हिन्दू