राज्य वित्त 2021-22 के बजट का अध्ययन शीर्षक से रिपोर्ट जारी
हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक ने “राज्य वित्तः 2021-22 के बजट का अध्ययन” शीर्षक से रिपोर्ट जारी की है।
यह भारतीय रिज़र्व बैंक का एक वार्षिक प्रकाशन है। यह राज्य सरकारों के वित्त का विश्लेषण और मूल्यांकन करता है।
मुख्य बिंदु
- राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) समीक्षा समिति की सिफारिशों के अनुसार, राज्यों का संयुक्त ऋण-से-जीडीपी अनुपात (जो मार्च 2021 के अंत में 31%था) वर्ष 2022-23 तक प्राप्त किये जाने वाले 20% के लक्ष्य से चिंताजनक रूप से अधिक है।
- वर्ष 2021-22 के लिए, राज्यों ने अपने सकल राजकोषीय घाटे (GFD) को सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में 7% रखा है। AGED से आशय कुल व्यय के अधिक होने से है। जब कुल व्यय, ऋण की अदायगी से प्राप्त राशि, राजस्व प्राप्तियों (बाह्य अनुदानों सहित) और गैर-ऋण पूंजीगत प्राप्तियों से अधिक हो जाए तो GFD की स्थिति उत्पन्न होती है।
- हालांकि, भारत में तीसरी श्रेणी की सरकारें रोकथाम रणनीतियों, स्वास्थ्य देखभाल, क्वारंटाइन और परीक्षण सुविधाओं को कार्यान्वित करके, टीकाकरण शिविर आयोजित करके तथा आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओं की आपूर्ति को बनाए रखकर महामारी का मुकाबला करने में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं। उनकी वित्तीय स्थिति गंभीर तनाव में आ गई है, जो उन्हें व्यय में कटौती करने और विभिन्न स्रोतों से धन जुटाने के लिए बाध्य कर रही है।
सिफारिश
- मध्यावधि में, राज्य सरकारों की वित्तीय स्थिति में सुधार 15वें वित्त आयोग द्वारा अनुशंसित विद्युत क्षेत्र में सुधारों पर निर्भर होंगे।
- राज्य सरकारों को नियमित अंतराल पर राज्य वित्त आयोगों का गठन करना चाहिए।
- नागरिक निकायों की कार्यात्मक स्वायत्तता में वृद्धि करनी चाहिए, उनके शासन ढांचे को मजबूत करना चाहिए और उच्च संसाधन उपलब्धता के माध्यम से उन्हें वित्तीय रूप से सशक्त बनाना चाहिए।
स्रोत – द हिंदू