राज्यों की बढ़ी हुयी ऋणग्रस्तता : रिपोर्ट

हाल ही में क्रिसिल की रिपोर्ट के अनुसार राज्यों की ऋणग्रस्तता इस दशक में उच्चतम स्तर पर बनी रहेगी।

इस रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक महामारी के पश्चात् राजस्व को बढ़ावा देने वाली रिकवरी के बावजूद, राज्यों की कुल ऋणग्रस्तता (सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) के अनुपात में ऋण), के चालू वित्त वर्ष में 33% तक होने की अपेक्षा की गयी है।

निम्नलिखित के कारण उच्च राजस्व अंतर्वाह राजस्व व्यय में वृद्धि द्वारा खंडित हो जाएगा:

  • उच्चतर प्रतिबद्ध व्यय (वेतन, पेंशन और ब्याज लागत से संबंधित)।
  • उच्चतर आवश्यक विकासात्मक व्यय (जैसे; सहायता अनुदान, चिकित्सा और कल्याण संबंधी व्यय)।

राज्यों द्वारा अधिक उधारियां निम्नलिखित को प्रभावित कर सकती हैं:

  • अर्थव्यवस्था में प्रभारती ब्याज दरें।
  • नए कारखानों में निवेश करने हेतु व्यवसायों के लिए वित्त की उपलब्धता।
  • नए श्रमिकों को रोजगार प्रदान करने की निजी क्षेत्र की क्षमता।
  • इसके अतिरिक्त, उच्च ऋण-जीडीपी अनुपात एक ऐसी परिस्थिति उत्पन्न कर सकता है, जहां राज्य अपने राजस्व व्यय का उपयोग नई परिसंपत्ति सृजित करने की बजाय अधिकाधिक ब्याज भुगतान के लिए करेंगे।

राज्य वित्त में सुधार के लिए हाल ही में उठाए गए कदम

  • केंद्र ने राज्यों के लिए उधार सीमा को वर्तमान में GSDP के 3% से बढ़ाकर 5% कर दिया है।
  • केंद्र ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत राज्यों को अनुदान के रूप में लगभग 80,000 करोड़ रूपये जारी किए हैं।
  • पूंजीगत व्यय के लिए राज्यों को वित्तीय सहायता योजना का शुभारंभ किया गया है।

स्रोत – द हिन्दू

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