विधेयकों पर राज्यपाल का वीटो अधिकार
चर्चा में क्यों?
उच्चतम न्यायालय ने सहमति के लिए प्रस्तुत विधेयकों पर राज्यपाल द्वारा निष्क्रियता पर ‘गंभीर चिंता’ व्यक्त की हैं।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु
- सहमति रोके जाने पर विधेयक को पुनर्विचार के लिए लौटाना अनिवार्य- कोर्ट ने माना है कि अनुच्छेद 200 के तहत, यदि राज्यपाल सहमति रोक देता है तो उसे प्रस्तावित कानून पर पुनर्विचार करने के संदेश के साथ विधेयक को “जितनी जल्दी हो सके” वापस करना होगा। एक राज्यपाल जो बिना कुछ किए किसी विधेयक को रोकना चाहता है, वह संविधान का उल्लंघन करेगा।
- इसमें कहा गया है कि अभिव्यक्ति “जितनी जल्दी हो सके” एक “अभियान की संवैधानिक अनिवार्यता” को व्यक्त करती है जिसका अर्थ अनिश्चित काल तक नहीं रखा जा सकता है। इस प्रकार कोर्ट ने ‘पॉकेट वीटो’ पर अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है
- राज्यपाल को विधेयकों पर कोई वीटो शक्ति प्राप्त नहीं है- विधेयक को पुनर्विचार के लिए लौटाने के बाद, यदि राज्य विधायिका विधेयक को संशोधन के साथ या बिना संशोधन के फिर से पारित करती है और विधेयक को राज्यपाल की सहमति के लिए प्रस्तुत किया जाता है, तो राज्यपाल अनुमति नहीं रोकेंगे (अनुच्छेद 200) ).
राज्य विधेयकों पर वीटो:
- राज्यपाल को राज्य विधानमंडल द्वारा पारित कुछ प्रकार के विधेयकों को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित करने का अधिकार है।
- फिर, विधेयक के अधिनियमन में राज्यपाल की कोई और भूमिका नहीं होगी।
- राष्ट्रपति ऐसे विधेयकों पर न केवल पहली बार में बल्कि दूसरी बार भी अपनी सहमति रोक सकता है।
- इस प्रकार, राष्ट्रपति को राज्य के विधेयकों पर पूर्ण वीटो (निलंबनात्मक वीटो नहीं) प्राप्त है।
- इसके अलावा, राष्ट्रपति राज्य विधान के संबंध में भी पॉकेट वीटो का प्रयोग कर सकते हैं।
स्रोत – द हिंदू