राजा राममोहन राय

राजा राममोहन राय

22 मई को आधुनिक भारत के पुनर्जागरण के जनक और एक अथक समाज सुधारक ‘राजा राम मोहन राय’ की 250वीं जयंती मनाई गई।

राममोहन राय का जन्म 22 मई, 1772 को बंगाल प्रेसीडेंसी के ‘राधानगर’ नामक शहर में हुआ था। ‘अकबर द्वितीय’ के प्रतिनिधि के रूप में राममोहन राय ने ब्रिटिश सरकार के समक्ष उसके लिए पेंशन और भत्तों के लिए मांग रखी।

राममोहन राय को ‘राजा’ की उपाधि ‘अकबर द्वितीय’ ने ही प्रदान की थी ।

सामाजिक योगदान:

  • यह महिला अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले तथा सती प्रथा के मुखर विरोधी थे। विदित हो कि वर्ष 1829 में पारित ‘सती प्रथा उन्मूलन अधिनियम’ इनके प्रयासों का परिणाम था।
  • राजा राममोहन राय ने महिलाओं को ‘विरासत’ और ‘संपत्ति के अधिकार’ दिए जाने की भी मांग की।
  • उन्होंने, उस समय प्रचलित बहुविवाह और बाल विवाह के खिलाफ भी आवाज उठाई थी ।
  • उन्होंने महिला शिक्षा का समर्थन किया, क्योंकि उनका मानना ​​था कि केवल शिक्षा ही महिलाओं को पुरुषों के समान सामाजिक दर्जा दिला सकती है।

संबद्ध संगठन:

  • राजा राममोहन राय द्वारा मूर्ति पूजा, निरर्थक कर्मकांडों और अंधविश्वासों के खिलाफ लोगों को जागरूक करने के लिए 1814 में ‘आत्मीय सभा’ की शुरुआत की। उन्होंने ‘एकेश्वरवादी आदर्शों’ (Monotheistic Ideals) का प्रसार किया।
  • वर्ष 1817 में, ‘डेविड हेयर’ के साथ मिलकर इन्होने कलकत्ता में ‘हिंदू कॉलेज’ की स्थापना की।
  • सितंबर 1821 में विलियम एडम और राममोहन रॉय द्वारा संयुक्त रूप से स्थापित ‘कलकत्ता एकेश्वरवादी समिति’ (Calcutta Unitarian Committee) द्वारा ‘धार्मिक एकेश्वरवाद’ और सामाजिक सुधारों को बढ़ावा देने के लिए तत्कालीन प्रतिष्ठित ब्राह्मणों को एक साथ लाने का प्रयास किया गया।
  • वर्ष 1828 में उन्होंने देवेंद्रनाथ टैगोर के साथ ‘ब्रह्म सभा’ का गठन किया।
  • राजा राममोहन राय ने वर्ष 1822 में ‘एंग्लो-हिंदू स्कूल’ की स्थापना की, जिसमे यांत्रिकी और वोल्टेयर के दर्शन को पढ़ाया जाता था।
  • 1825 में, उन्होंने ‘वेदांत कॉलेज’ की शुरुआत की यहाँ भारतीय शिक्षा के साथ-साथ पश्चिमी सामाजिक और भौतिक विज्ञान आदि विषय पढ़ाए जाते थे।
  • 1830 में, उन्होंने ‘एलेग्जेंडर डफ’ को जनरल असेंबली द्वारा निर्देशित एक संस्था स्थापित करने में सहायता की, बाद में यह संस्था ‘स्कॉटिश चर्च कॉलेज’ बन गयी।

साहित्यिक योगदान:

  • राम मोहन राय ने तीन पत्रिकाओं ‘ब्राह्मणवादी पत्रिका’ (1821), बंगाली साप्ताहिक ‘संवाद कौमुदी’ (वर्ष 1822) और फारसी साप्ताहिक ‘मिरात-उल-अकबर’ का प्रकाशन किया।
  • इसके अलावा उन्होंने ‘तुहफत-उल-मुवाहिदीन’ (1804), ‘वेदांत गंथा’ (1815), ‘वेदांत सार’ (1816) के संक्षिप्तीकरण का अनुवाद भी किया।

स्रोत –द हिन्दू

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