राजस्थान में भूमि क्षरण के कारण थार मरुस्थल का तीव्र विस्तार
हाल ही में किये गए राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के अनुसार भूमि क्षरण के कारण थार मरुस्थल का तीव्र विस्तार हो रहा है।
यह अध्ययन, राजस्थान में मरुस्थलीकरण प्रक्रिया को समझने के लिए आयोजित किया गया था। ज्ञातव्य है कि यह अध्ययन संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय (UNCCD) के ढांचे के भीतर पर्यावरणीय रूप सेसंवेदनशील क्षेत्रों के आकलन का एक हिस्सा था।
अध्ययन का केंद्र थार मरुस्थल (विश्व का नौवां सबसे बड़ा गर्म उपोष्ण कटिबंधीय मरुस्थल) में पायी जाने वाली जलवायु और वनस्पति है।
UNCCD पर्यावरण और विकास को स्थायी भूमि प्रबंधन से जोड़ने वाला एकमात्र कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौता है।
अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष
- लोगों के प्रवास, वर्षा के प्रारूप में बदलाव, रेत के टीलों के प्रसार और अवैज्ञानिक वृक्षारोपण अभियान के कारण थार मरुस्थल का विस्तार हो रहा है।
- संसाधनों के अत्यधिक दोहन से वनस्पति आवरण में कमी आई है।
- अरावली पर्वतमाला का धीरे-धीरे क्षरण हो रहा है। ज्ञातव्य है कि यह पर्वतमाला मरुस्थल और मैदानी क्षेत्रों के बीच एक प्राकृतिक हरित दीवार के रूप में कार्य करती है।
- अरावली के क्षरण से रेतीले तूफान तीव्र हो जाएंगे। वे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) तक पहुँचने में सक्षम होंगे और वहां की वायु को प्रदूषित करेंगे।
- पिछले 46 वर्षों में इस क्षेत्र में जलाशयों में वृद्धि हुई थी और दुर्गम बालू क्षेत्र में 4.98% की कमी आई थी।
- भूमि क्षरण से तात्पर्य भूमि उपयोग के परिणामस्वरूप या मानव गतिविधियों सहित प्रक्रियाओं या प्रक्रियाओं के संयोजन से जैविक या आर्थिक उत्पादकता में कमी या हानि होना है।
मरुस्थलीकरण
- यह शुष्क, अर्ध-शुष्क और शुष्क उप-आर्द्र क्षेत्रों में भूमि का क्षरण है।
- यह मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन के कारण होता है।
- मरुस्थलीकरण का तात्पर्य मौजूदा मरुस्थलों के विस्तार से नहीं है।
स्रोत – द हिन्दू