राजस्थान में बांस मरु-उद्यान परियोजना का शुभारंभ
हाल ही में, खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) ने राजस्थान में सूखे भू-क्षेत्र पर बांस मरु-उद्यान (Bamboo Oasis on Lands in Drought: BOLD) परियोजना का शुभारंभ किया है ।
- प्रोजेक्ट बोल्ड (BOLD) भूमि क्षरण को कम करने और मरुस्थलीकरण की रोकथाम के लिए शुष्क एवं अर्ध-शुष्क भूमि क्षेत्रों मेंबांस आधारित हरित पट्टी निर्मित करने का प्रयास करता है।
- बांस एक तेजी से बढ़ने वाली घास है और आमतौर पर काष्ठीय होती है। यहउष्णकटिबंधीय, उपोष्णकटिबंधीय और मृदु समशीतोष्ण क्षेत्रों में पाया जाता है।
- भारत, बांस विविधता के मामले में चीन के उपरांत दूसरे स्थान पर है।
बांस की कृषि के लाभ:
- बांस जल संरक्षण करता है और भूमि की सतह से जल के वाष्पीकरणको कम करता है।
- बांस क्षतिग्रस्त मृदा के उपचार और मरम्मत करने की अपनीअनूठी क्षमता के साथ निम्नीकृत मृदा के पुनर्स्थापन के लिए आदर्श है।
बांस के अनुप्रयोगः
निर्माण सामग्री, कृषि उपकरण, फर्नीचर, संगीत वाद्ययंत्र, खाद्य पदार्थ, हस्तशिल्प, बड़े बांस आधारित उद्योग (कागजलुगदी, रेयान इत्यादि), पैकेजिंग आदि में उपयोग।
बांस की कृषि को बढ़ावा देने हेतु उपाय
- वृक्षारोपण एवं नर्सरी संवर्धन तथा बांस उत्पादों के विकास के लिए 9 राज्यों में 22 बांस क्लस्टर आरंभ किए गए हैं।
- पुनर्गठित राष्ट्रीय बांस मिशन, बांस क्षेत्र की संपूर्ण मूल्य श्रृंखला के समग्र विकास के लिए वर्ष 2018-19 में आरंभ किया गया था।
- वर्ष 2017 में, भारतीय वन अधिनियम 1927 में संशोधन करके बांस को वृक्षों की परिभाषा से हटा दिया गया था। इसलिए वनों के बाहर उगने वाले बांस को अब कटाई और पारगमन अनुमति (transit permissions) की आवश्यकता नहीं है।
स्रोत – द हिन्दू