राजनीति में बढ़ता अपराधीकरण
हाल ही में, उच्चतम न्यायालय (SC) ने निर्देश दिया है कि सभी राजनीतिक दलों को अपने प्रत्याशियों के चयन के 48 घंटे के भीतर उनका आपराधिक ब्यौरा सार्वजनिक करना होगा।
- ज्ञातव्य है कि SC एक अवमानना याचिका पर सुनवाई कर रहा था। इस याचिका में वर्ष 2020 में बिहार विधानसभा निर्वाचनों के दौरान विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा न्यायालय के आदेशों की सोद्देश्य अवज्ञा करने का आरोप लगाया गया था।
- उच्चतम न्यायालय ने फरवरी 2020 में एक आदेश जारी किया था। इसमें SC ने सभी राजनीतिक दलों के लिए उनकेप्रत्याशियों के विरुद्ध लंबित आपराधिक मामलों की जानकारी और उनके चयन के कारणों को उनकी वेबसाइट्स तथा कम से कम दो समाचार पत्रों में प्रकाशित करना अनिवार्य कर दिया था।
उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित अन्य निर्देश
- राजनीतिक दलों को अपनी वेबसाइट के होमपेज पर अपने चयनित प्रत्याशियों के पूर्ववर्ती अपराधों से संबंधित जानकारी प्रकाशित करनी होगी।
- SC के निर्देशों के अनुपालन की निगरानी हेतु भारत निर्वाचन आयोग द्वारा एक पृथक प्रकोष्ठ गठित किया जाएगा।
- राजनीतिक दल द्वारा गैरअनुपालन के मामले में, निर्वाचन आयोग इसे न्यायालय के आदेशों/निर्देशों की अवमानना के रूप में न्यायालय के संज्ञान में लाएगा।
- SC ने निर्वाचन आयोग को एक ऐसा समर्पित मोबाइल एप्लिकेशन निर्मित करने का निर्देश दिया है, जिसमें उम्मीदवारों के आपराधिक ब्यौरे की जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी। इस ऐप के माध्यम से ऐसी जानकारी तक मतदाताओं की आसान पहुंच सुनिश्चित हो सकेगी।
- राजनीति के अपराधीकरण के कई स्वरूप हैं, जैसेः बड़ी संख्या में निर्वाचित प्रतिनिधियों के विरुद्ध लंबित आपराधिक मामले, बूथ कैप्चरिंग, गैर-गंभीर उम्मीदवारों का निर्वाचन प्रक्रिया में भागलेना, मतदाता सूची से छेड़छाड़ करना, मतदान संबंधी अन्य अनियमितताएं आदि।
- इसके अतिरिक्त, उच्चतम न्यायालय द्वारा यह भी निर्देशित किया गया है कि किसी सांसद या विधायक के विरुद्ध आपराधिक मामला संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय की सहमति प्राप्त करने के उपरांत ही वापस लिया जा सकता है।
- न्यायालय ने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 321 के तहत राज्य सरकारों द्वारा शक्ति के दुरुपयोग पर भी टिप्पणी की है। यह धारा एक अभियोजक को किसी आरोपी के विरुद्ध एक आपराधिक मामले को वापस लेने की मांग करने के लिए अधिकृत करती है।
स्रोत – द हिन्दू