सरकार ने लोकसभा में सूचित किया की राजद्रोह कानून को रद्द करने का कोई प्रस्ताव नहीं
हाल ही में सरकार ने यह सूचित किया है कि राजद्रोह कानून से निपटने के लिए भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A को समाप्त करने के संबंध में कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है ।
इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि धारा 124A के प्रावधानों के दायरे और मापदंडों की व्याख्या करने की आवश्यकता है।
विशेषतः समाचार, सूचना एवं अधिकारों को संप्रेषित करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंटमीडिया के अधिकार केसंदर्भ में व्याख्या करने की विशेष रूप से आवश्यकता है।
भारत में राजद्रोह कानून
- धारा 124A राजद्रोह को एक अपराध के रूप में उस स्थिति में परिभाषित करती है, जब कोई व्यक्ति भारत में विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति शब्दों, संकेत और दृश्यात्मक प्रदर्शन या अन्यथा आदि निम्नलिखित माध्यमों से घृणा या अवमानना, घृणा या अप्रीति (असंतोष) उत्पन्न करता है।
- ध्यातव्य है कि यह गैर-जमानती अपराध है। भारत में राजद्रोह कानून के विरुद्ध तर्क – ब्रिटेन, दक्षिण कोरिया और इंडोनेशिया जैसे देशों ने भी इस कानून को समाप्त कर दिया है।
- अप्रीति जैसे वाक्यांश अस्पष्ट हैं और उनकी व्याख्या भिन्न-भिन्न तरीके से की जा सकती है।
- केदारनाथ वाद (1962) के निर्णय के अनुसार, राजद्रोह कानून को दुर्लभ स्थितियों में ही लागू करना चाहिए। हालांकि, कानून के दुरुपयोग, कुप्रयोग और दुष्प्रयोग की घटनाएं प्रायः होती रहती है।
राजद्रोह कानून का महत्व
- राष्ट्रविरोधी, अलगाववादी और आतंकवादी तत्वों का मुकाबला करने में उपयोगिता। यह इसे हिंसा से बचाता है और अवैध तरीकों से चुनी हुई सरकार को उखाड़ फेंकने का प्रयास करता है।
- यह कानून नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय वाचा के अनुरूप नहीं है। यह सभी व्यक्तियों के अधिकार के रूप में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करता है। भारत इस वाचा का एक हस्ताक्षरकर्ता है।
स्रोत – द हिन्दू