विधि आयोग द्वारा राजद्रोह कानून को बनाए रखने की सिफारिश
हाल ही में भारत के विधि आयोग ने देश में राजद्रोह कानून (Sedition law) को बनाए रखने की सिफारिश की है।
विधि आयोग ने अपनी 279वीं रिपोर्ट में कहा है कि, राजद्रोह कानून से संबंधित धारा-124A को कुछ संशोधनों के साथ भारतीय दंड संहिता में बनाए रखने की आवश्यकता है।
राजद्रोह कानून पर विधि आयोग की सिफारिशें –
- राजद्रोह का एक औपनिवेशिक कानून होना, इसे निरस्त करने का वैध आधार नहीं हो सकता ।
- इस कानून के उल्लंघन पर दोषी व्यक्ति को दंड के रूप में आजीवन कारावास या 7 साल तक की सजा दी जा सकती है या जुर्माना लगाया जा सकता है।
- राजद्रोह कानून के उल्लंघन पर प्रारंभिक जांच और सरकार से मंजूरी के बाद ही प्राथमिकी (FIR) दर्ज की जानी चाहिए । इसके लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-154 में संशोधन किए जाने चाहिए ।
- राजद्रोह कानून को केदार नाथ वाद (1962) में दिए गए निर्णय के अनुरूप लाने के लिए धारा-124A में संशोधन किया जाना चाहिए।
- केदार नाथ वाद में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया था कि किसी व्यक्ति पर यह धारा लगाने से पहले हिंसा भड़काने की उसकी प्रवृत्ति को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
- इस कानून के तहत, राजद्रोह एक संज्ञेय, गैर-जमानती और गैर-प्रशम्य (Non-compoundable) अपराध है ।
- राजद्रोह के लिए अधिकतम सजा के तौर पर आजीवन कारावास (जुर्माने के साथ या जुर्माने के बिना) का प्रावधान किया गया है।
- मई 2022 में SG वोम्बटकेरे बनाम भारत संघ वाद में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया था कि जब तक केंद्र सरकार राजद्रोह कानून के प्रावधान पर पुनर्विचार नहीं करती, तब तक इसके तहत सभी कार्यवाहियों को निलंबित रखा जाए ।
स्रोत – इंडियन एक्सप्रेस