राइट टू रिपेयर मूवमेंट: ई-अपशिष्ट उत्पादन की समस्या का समाधान
इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की मरम्मत का अधिकार (राइट टू रिपेयर मूवमेंट) Right to Repair सरकारी कानून की आवश्यकता का एक संदर्भ है। इसका उद्देश्य उपभोक्ताओं को अपने स्वयं के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मरम्मत और उन्हें रूपांतरित करने की क्षमता प्रदान करना है।
इस आंदोलन का प्रारंभ 1950 के दशक से माना जाता है।यह अवधारणा संयुक्त राज्य अमेरिका में मोटर वाहन उद्योग से उत्पन्न हुई थी।
आवश्यकताः
- ई-अपशिष्ट को कम करके दीर्घ समय तक पर्यावरण की रक्षा करना।
- ई-अपशिष्ट कोई भी ऐसा विद्युत या इलेक्ट्रॉनिक उपकरण होता है, जो चलन या उपयोग से बाहर हो जाताहै। यह विषाक्त रसायनों के कारण विशेष रूप से खतरनाक होता है। ये रसायन ई-अपशिष्ट को किसीगड्ढे में दबाने पर इसके भीतर की धातुओं से स्वाभाविक रूप से निक्षालित हो जाते हैं।
- ‘नियोजित अप्रचलन’ की संस्कृति को कम करना। नियोजित अप्रचलन का आशय यही है कि उपकरणों कोविशेष रूप से सीमित समय तक प्रचलन के लिए डिज़ाइन किया गया है।
- पर्यावरण पर अत्यधिक दबाव और प्राकृतिक संसाधनों की बर्बादी।
- छोटी मरम्मत की दुकानों के लिए व्यवसाय को प्रोत्साहित करना।
चुनौतियाँ :
- तकनीकी कंपनियों की बौद्धिक संपदा को तृतीय पक्ष की मरम्मत सेवाओं के लिए उपलब्ध कराने से शोषण का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। साथ ही, उनके उपकरणों की सुरक्षा और कुशलता प्रभावित हो सकती है।
- इससे उपकरण साइबर हैकिंग और संबद्ध गोपनीयता संबंधी चिंताओं के प्रति अधिक सुभेद्य हो सकता है।
ई-अपशिष्ट के लिए भारत द्वारा की गई पहलें:
- डिजिटल इंडिया के तहत ई-अपशिष्ट जागरूकता कार्यक्रम आरंभ किया गया है। साथ ही ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2016 अधिसूचित किए गए हैं।
- ई-कचरा क्लिनिक (E-Waste Clinic), अपशिष्ट के पृथक्करण, प्रसंस्करण और निपटान में सक्षम बनाता है।
स्रोत – द हिन्दू