सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने ‘राइट टू रिपेयर‘ पोर्टल लॉन्च किया
- हाल ही में उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने ‘राइट टू रिपेयर’ पोर्टल लॉन्च किया है।
- राइट टू रिपेयर’ पोर्टल (https://www.righttorepairindia.in/home), राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस (24 दिसंबर) के अवसर पर लॉन्च किया गया है।
- यह पोर्टल प्रोडक्ट मैनुफैक्चर्स को ग्राहकों के साथ उत्पाद विवरण के मैनुअल को साझा करने के लिए एक मंच प्रदान करेगा ताकि वे मूल मैनुफैक्चर्स पर निर्भर रहने के बजाय या तो स्वयं या तीसरे पक्ष से उत्पाद की मरम्मत कर सकेंगे।
- शुरुआत में पोर्टल पर मोबाइल फोन, इलेक्ट्रॉनिक, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, ऑटोमोबाइल और खेती के उपकरणों को कवर किया जाएगा।
- राइट टू रिपेयर को अमेरिका व ब्रिटेन सहित यूरोपीय संघ में भी मान्यता दी गई है ।
‘राइट टू रिपेयर‘ का मतलब
- राइट टू रिपेयर (Right to repair) का मतलब है कि ग्राहकों को अपने क्षतिग्रस्त या टूटे हुए इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों को मरम्मत के लिए प्रोडक्ट बनाने वालों या उसके द्वारा अधिकृत सेंटर के पास वापस नहीं ले जाना होगा। इसके बजाय वे फोन या लैपटॉप जैसी चीजों को स्वयं ठीक कर सकते हैं, या उन्हें कम लागत वाली स्वतंत्र मरम्मत की दुकानों में ले जा सकते हैं।
- “राइट टू रिपेयर” के पीछे तर्क यह है कि जब हम कोई उत्पाद खरीदते हैं, तो उसमें यह बात निहित होती है कि हम उसके पूरे मालिक हैं तथा इसके लिये उपभोक्ताओं को यह अधिकार है कि वह आसानी से तथा सस्ते में उत्पाद की मरम्मत या उसमें सुधार कर सके। इसके लिये उसे निर्माताओं के नखरे नहीं सहने पड़ें।
- बहरहाल, समय बीतने के साथ देखा जा रहा है कि “राइट टू रिपेयर पर लगाम लगाई जा रही है। मरम्मत के काम में अनावश्यक विलंब होता है, और कभी-कभी उत्पादों की मरम्मत की बहुत ज्यादा कीमत वसूली जाती है। इसके कारण उपभोक्ता के पास कोई विकल्प नहीं बचता। अकसर पुर्जे उपलब्ध नहीं होते, जिसके कारण उपभोक्ता को मुश्किलों और परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
भारत में राइट टू रिपेयर के लिए फ्रेमवर्क विकसित करने का महत्व
- यह स्थानीय बाजार में उपभोक्ताओं एवं उत्पाद के खरीदारों को सशक्त बनाएगा ।
- ‘नियोजित अप्रचलन (Planned obsolescence)’ की रणनीति को हतोत्साहित करेगा। नियोजित अप्रचलन के अंतर्गत कंपनियां उत्पाद को कुछ इस तरह डिज़ाइन करती हैं कि वह सीमित समय तक उपयोग में रहे और उसके बाद उसे बदलना जरुरी हो जाए ।
- यह उपकरण के मूल विनिर्माताओं और तृतीय – पक्ष खरीदारों व विक्रेताओं के बीच व्यापार में सामंजस्य स्थापित करेगा ।
- उत्पादों की संधारणीय तरीके से खपत को बढ़ावा देगा और ई-अपशिष्ट में कमी लाएगा।
- तृतीय पक्ष को उत्पाद की मरम्मत की अनुमति देने से आत्मनिर्भर भारत के माध्यम से रोजगार के अवसर पैदा किए जा सकेंगे।
स्रोत – द हिन्दू