रत्नागिरी की शैल नक्काशियां (पेट्रोग्लिफ्स)
- हाल ही में महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के बारसू गांव (Barsu village) में रत्नागिरी तेल रिफाइनरी और पेट्रोकेमिकल कॉम्प्लेक्स के लिए प्रस्तावित साइट विवाद के केंद्र में है।
- कुछ विशेषज्ञों ने चिंता जताई है कि यह परियोजना इस क्षेत्र में पाए जाने वाले प्राचीन शैल नक्काशी (rock carvings) को नुकसान पहुंचा सकती है। जिस वजह से विशेषज्ञों ने रत्नागिरी में प्रस्तावित मेगा ऑयल रिफाइनरी परियोजना को अस्वीकार कर दिया है।
पेट्रोग्लिफ्स/जियोग्लिफ्स (petroglyphs/geoglyphs)
- रॉक आर्ट या पेट्रोग्लिफ्स/जियोग्लिफ्स (petroglyphs/geoglyphs), 20,000 साल पुराने होने के अनुमान है और राज्य पुरातत्व विभाग और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित स्मारकों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- इन शैल कलाकृतियों को संरक्षित स्मारकों के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इन्हें यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया गया है।
- पेट्रोग्लिफ बारसू, रुंधे, देवीहसोल, देवाचे गोथने, उक्षी, चावे और कशेली जैसे कई गांवों में फैले हुए हैं। बारसू के पठार में 62 से अधिक जियोग्लिफ्स हैं।
- यह कोंकण के तटीय क्षेत्र में जियोग्लिफ्स का सबसे बड़ा समूह है। उनमें से एक में मनुष्य और दो बाघों की बड़ी नक्काशी है।
- जियोग्लिफ्स ऐसी शैल नक्काशियां (रॉक आर्ट) हैं जो जमीन पर या तो पोजीशनिंग चट्टानों, शैल खंडों द्वारा निर्मित होते हैं। ये शैल नक्काशियां प्रागैतिहासिक दौरान कठोर लेटराइटिक शैल पर बनाई गई हैं।
- पेट्रोग्लिफ्स एक चट्टान की सतह के हिस्से को काटकर, उठाकर, तराश कर या घिस कर खींचा जाता है।
- रत्नागिरी जिले में 1,500 से अधिक पेट्रोग्लिफ्स हैं, जिन्हें कटल शिल्पा (katal shilpa) भी कहा जाता है, जो 70 स्थलों में फैले हुए हैं। नक्काशी मानव आकृतियों, पक्षियों, जानवरों और ज्यामितीय रूपों के आकार में हैं, हालांकि वे में भिन्न हैं।
- भीमबेटका और मिर्जापुर नक्काशियों के विपरीत, यहां जानवरों के शिकार के किसी भी दृश्य को चित्रित नहीं किया गया है।
स्रोत – इंडियन एक्सप्रेस