यूरोप में दुर्लभ मृदा तत्वों (REE) के सबसे बड़े भण्डार की खोज
हाल ही में स्वीडन ने यूरोप में दुर्लभ मृदा तत्वों (Rare Earth Elements: REE) के सबसे बड़े भण्डार की खोज की है।
- REE भंडार की खोज स्वीडन के आर्कटिक क्षेत्र किरुना में की गई है। किरुना में दुनिया की सबसे बड़ी भूमिगत लौह-अयस्क खदान मौजूद है।
- दुर्लभ मृदा तत्व (Rare Earth Elements: REE ) 17 धात्विक तत्वों का एक समूह है। इसमें आवर्त सारणी के 15 लैंथेनाइड्स के अलावा स्कैंडियम और यिट्रियम शामिल हैं।
- ये तत्व महत्वपूर्ण क्षेत्रकों के लिए आवश्यक घटक हैं। REE का सेलुलर टेलीफोन; कंप्यूटर हार्ड ड्राइव इलेक्ट्रिक वाहन तथा रक्षा क्षेत्र में गाइडेंस सिस्टम व लेजर आदि में उपयोग किया जाता है।
- REE में कुछ सामान्य गुण हैं जैसे- अधिक चमक, उच्च विद्युत चालकता आदि। कुछ REEs में संदीप्ति (luminescence), चुंबकत्व जैसे विशेष गुण भी मौजूद होते हैं।
- इसके अतिरिक्त, हल्के REEs की तुलना में उच्च परमाणु भार वाले भारी REEs कम मिलते हैं।
- हालांकि, REEs अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों में काफी हद तक वितरित हैं, किन्तु इनका खनन अधिक चुनौतीपूर्ण है। इसके पीछे उत्तरदायी कारण इनका जटिल प्रसंस्करण और गहन पर्यावरणीय प्रभाव हैं ।
- वर्तमान में दुनिया की 80% से अधिक दुर्लभ मृदा प्रसंस्करण क्षमता चीन के पास है।
- भारत में विश्व का लगभग 6% REE भंडार है, लेकिन वैश्विक उत्पादन में इसकी भागीदारी केवल 1% है।
भारत द्वारा उठाए गए कदम: खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड (KABIL ) की स्थापना की गई है। इसके अलावा, ऑस्ट्रेलिया- भारत क्रिटिकल मिनरल्स इन्वेस्टमेंट पार्टनरशिप जैसे द्विपक्षीय समझौते किए गए हैं।
स्रोत – द हिन्दू