यूक्रेन युद्ध संकट
यूक्रेन युद्ध के वास्तविक जोखिम के बीच नाटो-रूस वार्ता में गतिरोध पैदा हुआ । यह वार्ता इसलिए आयोजित की गई थी, क्योंकि रूस ने यूक्रेन की पूर्वी सीमा के पास युद्ध के लिए तैयार सैनिकों और भारी सैन्य उपकरणों आदि की तैनाती कर दी है।
इस वार्ता के दौरान उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) और अमेरिका ने यूक्रेन पर तनाव कम करने के लिए प्रमुख रूसी सुरक्षा मांगों को अस्वीकार कर दिया है।
रूस की मांग यह थी कि नाटो, यूक्रेन और रूस के अन्य पड़ोसी देशों से अपने सैनिकों एवं सैन्य उपकरणों को हटा ले।
संकट की पृष्ठभूमि – यूक्रेन युद्ध संकट
- रूस-यूक्रेन संकट वर्ष 2014 में शुरू हुआ था।
- रूस द्वारा यूक्रेन के क्रीमिया क्षेत्र पर अधिकार करने के बाद, नवंबर 2014 से दो अलगाववादी (breakaway) क्षेत्रों में यूक्रेन की सेना और रूस समर्थक अलगाववादियों के बीच एक उग्र संघर्ष जारी है। वर्ष 2015 में, “मिन्स्क-2 शांति समझौते” (The Minsk-2 agreement) पर हस्ताक्षर किए गए थे। इसमें फ्रांस और जर्मनी मध्यस्थ थे। इस समझौते के बाद एक खुला संभावित संघर्ष टल गया था।
- इस समझौते को विद्रोही क्षेत्रों में संघर्ष को समाप्त करने और सीमा को यूक्रेन के राष्ट्रीय सैनिकों को सौंपने के लिए डिज़ाइन किया गया था।
- यूक्रेन द्वारा इन अलगाववादी क्षेत्रों को अधिक शक्ति सौंपना, संवैधानिक सुधार प्रस्तुत करना और उनकी विशेष स्थिति को संहिताबद्ध किया जाना था।
नाटो संगठन
- नाटो उत्तरी अमेरिकी और यूरोपीय देशों के बीच एक अंतर-सरकारी सैन्य गठबंधन है।
- इसका गठन वर्ष 1949 में शीत युद्ध के दौरान किया गया था। इसका उद्देश्य सदस्य देशों को कम्युनिस्ट देशों से उत्पन्न खतरों से बचाना है।
- नाटो गैर-सदस्य देशों की भी रक्षा करता है। उदाहरण के लिए, यूक्रेन नाटो का सदस्य न होने के बादभी वर्षों से नाटो के साथ कार्य कर रहा है।
स्रोत –द हिन्दू