म्यांमार में सेना द्वारा तख्तापलट
- ‘आंग सान सू की’ की लोकतांत्रिक रूप से म्यांमार में चुनी गई सरकार के खिलाफ म्यांमार की सेना ने तख्तापलट कर दिया है और ‘आंग सान सू की’को सेना द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया है।
- नेताओं को ‘चुनावी धोखाधड़ी’ करने के आरोपों के स्वरूप हिरासत में लिए गया है।
सैन्य तख्तापलट का भारत के लिए निहितार्थ:
- भारत के लिए, सान सू की तथा नेशनल लीग ऑफ डेमोक्रेसीके राजनीतिक नेताओं की गिरफ्तारी, 30 साल पहले की घटनाओंका दोहराव है।
- हालाँकि भारत की प्रतिक्रिया इस बार अलग होने की संभावना है। भारत म्यांमार में लोकतंत्र का समर्थक है,लेकिन अभी वह सैन्य तख्तापलट का विरोध करने का जोखिम नहीं उठा सकता है, क्योंकिम्यांमार की सेना के साथ भारत के सुरक्षा संबंध प्रगाढ़ हो चुके हैं, और भारत इसे उत्तर-पूर्वी सीमाओं को विद्रोही समूहों से सुरक्षित हथियार मानता है।
- लोकतंत्र की प्रतीक और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता के रूप में सुश्री‘सू की’ रोहिंग्या समुदाय पर नृशंसता करने से रोकने में विफल रहीं,इस वजह से उनकी छवि उनके कार्यकाल के दौरान काफी धूमिल हो चुकी है।
- भारत ने म्यांमार में कई अवसंरचना एवं विकास परियोजनाओं में निवेश किया है। भारत इन परियोजनाओं के लिए ‘आसियान देशों तथा पूर्व के प्रवेश द्वार’ के रूप मेंदेखता है (उदाहरणार्थ:भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग और कलादान बहु-मोडल पारगमन परिवहन नेटवर्क,सीटवे डीप वाटर पोर्ट पर एक विशेष आर्थिक क्षेत्र परियोजना)।
- इसके अलावा, भारत के लिए अभी भी बांग्लादेश में पलायन करने वालेरोहिंग्या शरणार्थियों के मुद्देको सुलझाने में मदद करने की उम्मीद है, और इस विषय पर म्यांमार सरकार से वार्ता जारी रखना चाहेगा। भारत में भी कुछ रोहिंग्या शरणार्थियों ने पलायन किया है।
म्यांमार का सैन्य संविधान:
- म्यांमार में सेना द्वारा वर्ष 2008 में एक संविधान का मसौदा तैयार किया गया था, और इसी वर्ष अप्रैल में इस पर संदेहास्पद जनमत संग्रह कराया गया था।
- यह संविधान, सेना द्वारा तैयार किया गया ‘लोकतंत्र का रोडमैप’ था, जिसे सेना ने पश्चिमी देशों के दबाव के कारण निर्मित किया था।
स्रोत – द हिन्दू