मैला ढोने की प्रथा पर सर्वेक्षण
हाल ही में, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अनुसार मैला ढोने से किसी भी व्यक्ति की मृत्यु नहीं हुई है ।
- मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2013 और वर्ष 2018 में दो अलग-अलग सर्वेक्षण किए गए थे।
- हाथ से ढोने के कारण मृत्यु की कोई सूचना प्राप्त नहीं हुई है।
- यद्यपि, वर्ष 1993 से अब तक सीवर या सेप्टिक टैंक की सफाई में संलग्न 941 श्रमिकों की मृत्यु हो चुकी है।
- तमिलनाडु में सीवर या सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान हुई मृत्युओं की सर्वाधिक संख्या दर्ज की गई है। इसके उपरांत गुजरात और उत्तर प्रदेश का स्थान है।
- सरकार हाथ से मैला ढोने की प्रथा (लोगों द्वारा हाथ से मानव मल की सफाई करने की जाति-आधारित प्रथा) तथा सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई की प्रथा में विभेद करती है।
मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करने के लिए किए गए उपाय
- सफाई कर्मचारी नियोजन और शुष्क शौचालय सननिर्माण (प्रतिषेध) अधिनियम, 1993 Employment of Manual Scavengers and Construction of Dry Latrines (Prohibition) Act, 1993 के अधिनियमन के माध्यम से जाति आधारित प्रथा पर प्रथम बार प्रतिबंध आरोपित किया गया था।
- वर्ष 2013 में, हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम (PEMSR). 2013 {Prohibition of Employment as Manual Scavengers and their Rehabilitation Act (PEMSR), 2013) के रूप में ऐतिहासिक नया कानून पारित किया गया था। इसका दायरा व्यापक है, और इसमें हाथ से मैला ढोने वालों के पुनर्वास से संबंधित प्रावधान भी किए गए हैं।
- वर्ष 2007 में हाथ से सफाई करने वाले कर्मियों के पुनर्वास के लिए स्वरोजगार योजना (Self-Employment Scheme for Rehabilitation of Manual Scavengers: SRMS) आरंभ की गई थी। इसे समय-समय पर वर्ष2020-21 तक के लिए विस्तार प्रदान किया गया है।
- राष्ट्रीय गरिमा अभियान, हाथ से मैला ढोने की प्रथा के उन्मूलन और इन कर्मियों के पुनर्वास पर केंद्रित एक राष्ट्रीय अभियान है।
स्रोत – द हिन्दू