हाल ही में नीति आयोग द्वारा एक मेथनॉल अर्थव्यवस्था कार्यक्रम (Methanol Economy programme) को जारी किया गया है।
मेथनॉल अर्थव्यवस्था कार्यक्रम का उद्देश्य भारत के तेल आयात में होने वाले व्यय तथा ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम करना है। साथ ही, कोयला भंडार तथा नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट को मेथनॉल में रूपांतरित करना है।
मेथनॉल अर्थव्यवस्था के लाभ
पर्यावरण के अनुकूल
- पेट्रोल में मेथनॉल 15 (mls) का सम्मिश्रण, प्रदूषण को 33 प्रतिशत तक कम करेगा। साथ ही, मेथनॉल द्वारा डीजल के प्रतिस्थापन से वायु प्रदूषण में 80 प्रतिशत से अधिक की कमी आएगी।
- सभी आंतरिक दहन इंजनों (Internal Combustion Engines) में मेथनॉल का दक्षता से दहन होता है।
यह पेट्रोल और डीजल के साथ-साथ एथेनॉल से भी सस्ता है। इसकी सहायता से भारत वर्ष 2030 तक ईंधन पर होने वाले व्यय को 30 प्रतिशत तक कम कर सकता है।
परिवहन क्षेत्र, घरेलू भोजन पकाने के ईंधन और फ्यूल सेल सहित इसके विस्तृत अनुप्रयोग हैं।
इसके लिए मौजूदा इंजनों (वाहनों) और ईंधन वितरण अवसंरचना में बहुत कम संशोधन करने की आवश्यकता है।
मेथनॉल अर्थव्यवस्था के लिए नीति आयोग का रोड मैप
- वर्ष 2030 तक कच्चे तेल के आयात का 10 प्रतिशत केवल मेथनॉल द्वारा प्रतिस्थापित किया जाएगा।
- By 2030, only 10 percent of crude oil imports will be replaced by methanol.
- भारतीय उच्च राख युक्त कोयला, आबद्ध गैस (Stranded gas) और बायोमास का उपयोग करके वार्षिक रूप से 20 मिलियन टन (MT) मेथनॉल का उत्पादन 19 रुपये प्रति लीटर की लागत पर किया जा सकता है।
- विभिन्न स्रोतों से मेथनॉल के उत्पादन के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) द्वारा मेथनॉल अर्थव्यवस्था अनुसंधान कार्यक्रम (Mothanol Economy Research Programme: MERP) संचालित किया जा रहा है।
- इन स्रोतों में भारतीय कोयला तथा ताप विद्युत और इस्पात संयंत्रों आदि से उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड शामिल है।
- DST ने वर्ष 2015 में अपना मेथनॉल और डाई-मिथाइलईथर (DME) कार्यक्रम भी लॉन्च किया था।
स्रोत – पी आई बी