मेघा-ट्रॉपिक्स –1 (MT-1) उपग्रह
हाल ही में इसरो ने मिशन पूरा कर चुके मेघा-ट्रॉपिक्स-1(MT-1)उपग्रह का नियंत्रित री-एंट्री प्रयोग सफलतापूर्वक संपन्न किया है।
MT-1 का प्रक्षेपण भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो / ISRO) और फ्रांसीसी अंतरिक्ष एजेंसी ने किया था।
इसे उष्णकटिबंधीय मौसम और जलवायु का अध्ययन करने के लिए प्रक्षेपित किया गया था ।
नियंत्रित री-एंट्री के तहत बड़े उपग्रह / रॉकेट यान को उनकी वास्तविक कक्षा से अधिक निम्न कक्षा में लाया जाता है। इससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि इनका प्रभाव निर्धारित सुरक्षित क्षेत्र तक ही सीमित रहे ।
UN/IADC (इंटर- एजेंसी स्पेस डेब्रिस कोऑर्डिनेशन कमेटी) ने ‘अंतरिक्ष मलबा उपशमन दिशा-निर्देश जारी किए हैं। ये दिशा-निर्देश निम्न भू–कक्षा (LEO) में स्थित किसी ऑब्जेक्ट का मिशन – काल समाप्त होने पर उसे कक्षा से हटाने (Deorbiting) की सिफारिश करते हैं।
यह निम्नलिखित तरीकों से संपन्न करना होता है
ऑब्जेक्ट की सुरक्षित प्रभाव क्षेत्र में नियंत्रित री-एंट्री के माध्यम से,
इसे ऐसी कक्षा में लाकर जहां इसका कक्षीय जीवनकाल 25 वर्ष से कम हो जाए ।
अंतरिक्ष मलबे में प्राकृतिक (उल्कापिंड) और कृत्रिम (मानव निर्मित), दोनों तरह के पिंड शामिल होते हैं।
इनमें से अधिकतर मलबा LEO में मौजूद है। हालांकि, कुछ मलबा भू-स्थिर कक्षा में भी विद्यमान हो सकता है।
LEO आमतौर पर पृथ्वी से 1000 कि.मी. से कम ऊंचाई पर मौजूद कक्षा है। हालांकि, इसकी ऊंचाई 160 किमी जितनी कम भी हो सकती है।
अंतरिक्ष मलबे से निपटने के लिए इसरो की प्रमुख पहलें
इसरो सिस्टम फॉर सेफ एंड सस्टेनेबल ऑपरेशंस मैनेजमेंट (IS4OM): यह टकराव के खतरे वाले ऑब्जेक्ट्स की लगातार निगरानी करने और अंतरिक्ष मलबों से उत्पन्न जोखिम को कम करने के लिए उत्तरदायी है।
नेटवर्क फॉर स्पेस ऑब्जेक्ट्स ट्रैकिंग एंड एनालिसिस (NETRA) प्रोजेक्ट : अंतरिक्ष मलबे की स्थिति के बारे में प्रत्यक्ष जानकारी प्रदान करता है ।
स्पेडेक्स (SPADEX): इन – ऑर्बिट सेवा प्रदान करने के लिए यह एक स्पेस- डॉकिंग प्रयोग है ।
निसार (NISAR) के बारे में
यह नासा और इसरो द्वारा संयुक्त रूप से विकसित एक LEO वेधशाला है ।
यह 12 दिनों में संपूर्ण पृथ्वी का मानचित्र तैयार करेगी। साथ ही, पृथ्वी के पारिस्थितिकी – तंत्र में होने में होने वाले परिवर्तनों, बर्फ की मात्रा, वनस्पति बायोमास, समुद्र जल स्तर में वृद्धि, भू-जल और प्राकृतिक खतरों को समझने के लिए डेटा प्रदान करेगी।
निसार में L और S डुअल-बैंड सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAS) होंगे ।
स्रोत – द हिन्दू