मेघालय में बढ़ता रैट-होल खनन

मेघालय में बढ़ता रैट-होल खनन

हाल ही में हुई मेघालय कोयला खदान दुर्घटना के पश्चात खनन मंत्रालय ने गैर-कानूनी रैट होल कोयला खनन के जारी रहने पर चिंता व्यक्त की है ।

विदित हो कि रैट-होल खनन में आमतौर पर 3-4 फीट गहरी संकरी सरंगें बनाई जाती हैं। इनमें श्रमिक (अक्सर बच्चे) प्रवेश करते हैं और कोयला निकालते हैं।

Rat-hole mining on the rise in Meghalaya

कोयला खनन की यह तकनीक मेघालय में अधिक प्रचलित है, क्योंकि वहां कोयले की परत पतली है।

रैट-होल दो प्रकार के होते हैं:

  • जब इसे जमीन में खोदा जाता है तो ये ऊर्ध्वाधर (वर्टिकल) शाफ्ट होते हैं, जो खदानों की ओर ले जाते हैं। फिर नीचे क्षैतिज (हॉरिजोंटल) सुरंगें खोदी जाती हैं ,जहां कोयले की परतों तक पहंचने के लिए सीधे पहाड़ी ढलानों में क्षैतिज सुरंगें खोदी जाती हैं।
  • वर्ष 2014 में, राष्ट्रीय हरित अधिकरण NGT) ने मेघालय में रैट होल खनन पर प्रतिबंध लगा दिया था। न्यायालय ने इस खनन तकनीक को अवैज्ञानिक और श्रमिकों के लिए असुरक्षित बताया है।
  • हालांकि, वर्ष 2019 में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यदि खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम तथा खनिज रियायत नियम, 1960 के तहत कोयला खनन किया जाता है, तो NGT का प्रतिबंध लागू नहीं होगा।

रैट होल खनन के प्रभाव-

  • खनन क्षेत्रों में जल स्रोत पीने और सिंचाई के लिए अनुपयोगी हो गए हैं। साथ ही, यह जल पौधों और जानवरों के लिए भी विषाक्त हो गया है।
  • इससे बाल तस्करी को बढावा मिला है। खानों में आड़ी-तिरछी कई सुरंगे खोदी जाती हैं। इससे इनके ढहने का खतरा तो बना ही रहता है, साथ ही इनके डूब जाने या यहां बाढ़ आने का भी खतरा बना रहता है।
  • स्थानीय लोगों के लिए पुनर्वास या वैकल्पिक रोजगार की मांग भी बढ़ रही है।

स्रोत –द हिन्दू

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