मेकिंग मीडिएशन मेनस्ट्रीम : रिफ्लेक्शंस फ्रॉम इंडिया एंडसिंगापुर शिखर सम्मेलन
हाल ही में, भारत के मुख्य न्यायाधीश ने भारत-सिंगापुर मध्यस्थता शिखर सम्मेलन मेकिंग मीडिएशन मेनस्ट्रीम : रिफ्लेक्शंस फ्रॉम इंडिया एंड सिंगापुर को संबोधित किया।
- इस शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए, भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने मध्यस्थता को प्रत्येक स्वीकार्य विवाद के समाधान के लिए अनिवार्य प्रथम कदम के रूप में रेखांकित किया।
- भारत मध्यस्थता पर संयुक्त राष्ट्र अमिसमय (सिंगापुर कन्वेंशन) का एक हस्ताक्षरकर्ता है। यह अभिसमय मध्यस्थता के माध्यम से विवाद समाधान को विधिक समर्थन प्रदान करता है।
- मध्यस्थता एक वैकल्पिक विवाद समाधान (Alternative Dispute Resolution: ADR) प्रक्रिया है। इसमें एक तटस्थ तृतीय पक्ष (जिसे मध्यस्थ कहा जाता है) विवादित पक्षों के साथ एक बैठक करता है। इस बैठक में वह उनके विवाद को समाप्त करने हेतु एक समझौते तक पहुंचने में उनकी सहायता करने का प्रयास करता है।
भारत में मध्यस्थता को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है:
- न्यायालय द्वारा संदर्मित मध्यस्थताः भारत में न्यायालय सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के तहत लंबित किसी मामले को मध्यस्थता के लिए संदर्मित कर सकता है। मध्यस्थता के प्रभावी कार्यान्वयन की निगरानी के लिए वर्ष 2005 में उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता और सुलह परियोजना समिति(Mediation and Conciliation Project Committee: MCPC) की स्थापना की थी।
- निजी मध्यस्थताः योग्य कर्मचारी एक निश्चित शुल्क के आधार पर मध्यस्थ के रूप में कार्य करते हैं। भारत में लगभग 43,000 मध्यस्थता केंद्र हैं। आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2005 से अब तक लगभग 3.22 मिलियन मामलों को मध्यस्थता के लिए संदर्मित किया जा चुका है। इसके अतिरिक्त, मार्च 2021 तकमध्यस्थता के माध्यम से लगभग 10 लाख मामलों का समाधान किया जा चुका है।
मध्यस्थता के लाभः
- यह विवाद को निपटाने का एक लागत प्रभावी तरीका है।
- मुकदमेबाजी की तुलना में यह तीव्र प्रक्रिया
- सहयोग और समझ को बढ़ावा देती है।
- न्यायालय में होने वाले विलंब को कम करती है।
स्रोत – द हिन्दू