हाल ही में कोयला मंत्रालय ने मिशन कोकिंग कोल (MCC) की स्थापना की है।
मिशन कोकिंग कोल (MCC), भारत में कोकिंग कोल के उत्पादन को बढ़ाने की रणनीति बनाने के लिए गठित अंतर-मंत्रालयी समिति की सिफारिशों पर आधारित है।
कोकिंग कोयले की कोक में परिवर्तित होने की क्षमता को संदर्भित करता है। यह कार्बन का एक विशुद्ध रूप है। इसका उपयोग साधारण ऑक्सीजन भट्टियों में किया जा सकता है।
कोकिंग कोल का उपयोग वात भट्टी (ब्लास्ट फर्नेस) से इस्पात के निर्माण में किया जाता है।
घरेलू कोकिंग कोयला, राख की उच्च मात्रा (18% – 49% के मध्य) उत्पन्न करने वाला कोयला है। यह वात भट्टी में सीधे उपयोग के लिए उपयुक्त नहीं है। इसलिए, इसे आयातित कोकिंग कोल (9% राख) के साथ मिश्रित किया जाता है।
मिशन कोकिंग कोल (MCC) का उद्देश्य –
- घरेलू कोकिंग कोल के उत्पादन और उपयोग को बढ़ाने के लिए कार्य योजना तैयार करना।
- नई तकनीकों को अपनाना।
- निजी क्षेत्र के विकास के लिए कोकिंग कोल ब्लॉकों का आवंटन करना।
- नई कोकिंग कोल धोवनशालाओं (washeries) की स्थापना करना, अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों में वृद्धि करना और गुणवत्ता मानकों में सुधार करना।
- यह उत्पादन को बढ़ावा देने और घरेलू क्षमताओं को मजबूत करने में मदद करता है। इससे आयात में कमी संभव होगी और आत्मनिर्भर भारत की अवधारणा को बल मिलेगा।
- देश द्वारा वार्षिक आधार पर लगभग 50 मीट्रिक टन कोकिंग कोयले का आयात किया जाता है। वित्त वर्ष 2020-21 में आयातित कोकिंग कोयले का मूल्य 45,435 करोड़ रुपये था।
स्रोत – द हिन्दू