मिजोरम विधान सभा ने समान नागरिक संहिता (UCC) के अधिनियमन का विरोध
हाल ही में मिजोरम विधान सभा ने समान नागरिक संहिता (UCC) के अधिनियमन का विरोध करने वाला संकल्प अपनाया है।
- संविधान के अनुच्छेद 371G के तहत मिजोरम को उसकी सामाजिक या धार्मिक प्रथाओं, प्रथागत कानूनों और प्रक्रियाओं की रक्षा करने के लिए विशेष अधिकार दिए गए हैं।
- अनुच्छेद 371 (G) में कहा गया है कि संसद, राज्य विधान सभा की सहमति के बिना मिज़ो लोगों की धार्मिक या सामाजिक प्रथाओं, स्थानीय दीवानी (सिविल) एवं आपराधिक कानून, भू-स्वामित्व हस्तांतरण और प्रथागत कानूनी प्रक्रिया के मामलों पर निर्णय नहीं ले सकती है।
- समान नागरिक संहिता (UCC) एक ऐसे एकल कानून को कहते हैं, जो सभी नागरिकों पर उनके व्यक्तिगत मामलों (जैसे- विवाह, तलाक, गोद लेने और विरासत ) पर लागू होता है।
- यह संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत आता है। इस अनुच्छेद के अनुसार राज्य भारत के संपूर्ण राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास करेगा ।
UCC के पक्ष में तर्क–
- यह लैंगिक न्याय को मजबूत करेगी, क्योंकि ज्यादातर धार्मिक या प्रथागत पर्सनल लॉ पुरुषों के पक्ष में होते हैं
- यह अलग-अलग समुदायों के लोगों के विवाह, उत्तराधिकार आदि मामलों के संबंध में कानूनों में विसंगति को समाप्त करेगी ।
- इससे कई न्यायिक निर्णय लागू किए जा सकेंगे। मोहम्मद अहमद खान बनाम शाहबानो बेगम, 1985 एक ऐसा ही मामला था, जिसमें न्यायिक निर्णय लागू नहीं हो सका था ।
UCC के विरुद्ध तर्क–
- विधि आयोग ने कहा है कि UCC न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय है ।
- यह अल्पसंख्यकों के अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को समाप्त कर सकता है (संविधान का अनुच्छेद – 25) ।
- संसद के पास ‘पर्सनल लॉ पर कानून बनाने का अनन्य अधिकार नहीं है, क्योंकि यह समवर्ती सूची का विषय है।
स्रोत – द हिन्दू