माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम 1996

माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 

हाल ही में कानून और न्याय मंत्रालय ने माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम (Arbitration And Conciliation Act) में सुधार के लिए विशेषज्ञ समिति का गठन किया है ।

  • भारत को अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता का केंद्र बनाने के तेज प्रयासों के बीच कानून विभाग के पूर्व सचिव टी. के. विश्वनाथन के नेतृत्व में एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया है ।
  • यह समिति अदालतों पर न्यायिक बोझ को कम करने के लिए माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 में सुधारों की सिफारिश करेगी ।
  • यह समिति एक आदर्श माध्यस्थम् प्रणाली की रूपरेखा की सिफारिश करेगी। यह प्रणाली कुशल, प्रभावी और वहनीय होने के साथ-साथ उपयोगकर्ताओं की आवश्यकताओं की पूर्ति भी करेगी ।

माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996

  • इस कानून में घरेलू माध्यस्थम्, अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक माध्यस्थम्, विदेशी माध्यस्थम् पंचाट और सुलह से जुड़े नियमों को शामिल करने का प्रयास किया गया है।
  • यह कानून संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कानून आयोग (UNCITRAL) के अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक माध्यस्थम् पर मॉडल कानून, 1985 तथा सुलह पर UNCITRAL नियम, 1980 से प्राधिकार प्राप्त करता है। इसे 2015, 2019 और 2021 में संशोधित किया गया ।

वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) के पांच प्रकार समझौता वार्ता (Negotiation)

यह पारंपरिक रूप से संबंधित पक्षकारों और उनके वकील के बीच प्रत्यक्ष आधार पर संपन्न होता है। इसमें तटस्थ तृतीय पक्ष शामिल नहीं होता है।

  • मध्यस्थता (Mediation): एक बहुत ही लचीली प्रक्रिया है । इसे विवाद के दौरान किसी भी समय प्रभावी ढंग से इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • सहयोगात्मक कानून (Collaborative law): इसके तहत दोनों पक्षकारों का प्रतिनिधित्व एक सहयोगी वकील द्वारा किया जाता है और दोनों पक्षकार मुकदमा नहीं करने के लिए सहमत होते हैं।
  • माध्यस्थम् (Arbitration): इसके तहत साक्ष्य की प्रस्तुति के बाद एक तटस्थ मध्यस्थ द्वारा निर्णय दिया जाता है, जिसे पंचाट भी कहा जाता है ।
  • सुलह (Conciliation): इसके तहत एक तटस्थ तृतीय पक्ष द्वारा, संबंधित पक्षकारों से प्राप्त सूचना के आधार पर बातचीत कर समाधान के विकल्प प्रदान किए जाते हैं।

स्रोत – बिजनेस स्टैण्डर्ड

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