महाराष्ट्र में स्थापित किये जायेंगे नए ‘डॉप्लर रडार’
वर्ष 2021 में ‘भारत मौसम विज्ञान विभाग’ (India Meteorological Department- IMD) महाराष्ट्र में सात नए डॉप्लर रडार (Doppler Radars) स्थापित करेगा।
ज्ञातव्य हो कि ‘केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय’ ने इस वर्ष जनवरी माह में हिमालय पर मौसम परिवर्तन की सूक्ष्मता से निगरानी करने के लिए एक ‘एक्स-बैंड डॉप्लर वेदर रडार’ (Doppler Weather Radars- DWR) को चालू किया था।
विदित हो कि ,एक्स-बैंड डॉप्लर वेदर रडार’ को भारत में ही स्वदेशी रूप से निर्मित किया गया है। भारत में इस तरह के 10 रडार निर्मित किये गए हैं। जिनमे से दो रडार पहले ही हिमालय के अध्ययन हेतु स्थापित किये जा चुके हैं।
परिचय:
- प्रायः IMD द्वारा एस-बैंड, सी-बैंड और एक्स-बैंड जैसी अलग-अलग आवृत्तियों वाले डॉप्लर रडार का उपयोग लगभग 500 किमी के क्षेत्र में मौसम प्रणालियों, क्लाउड बैंड और गेज वर्षा की गति का अध्ययन करने तथा ट्रैक करने के लिये किया जाता है।
- इसी तरह अब महराष्ट्र के मुंबई में चार एक्स-बैंड और एक सी-बैंड रडार स्थापित किये जाएंगे। इसके अतरिक्त रत्नागिरी में एक नया सी-बैंड और वेंगुर्ला में एक एक्स-बैंड स्थापित किया जाएगा। ये सभी रडार बहु उद्देश्यों के लिये कार्य करेंगे ।
वर्तमान में स्थापित रडार:
भारत के पूर्वी तट पर : कोलकाता, पारादीप, गोपालपुर, विशाखापत्तनम, मछलीपट्टनम, श्रीहरिकोटा, कराईकल और चेन्नई।
पश्चिमी तट: तिरुवनंतपुरम, कोच्चि, गोवा और मुंबई।
अन्य रडार: श्रीनगर, पटियाला, कुफरी, दिल्ली, मुक्तेश्वर, जयपुर, भुज, लखनऊ, पटना, मोहनबार, अगरतला, सोहरा, भोपाल, हैदराबाद और नागपुर।
रडार का महत्त्व:
ये रडार, जटिल मौसम की घटनाओं जैसे चक्रवात और भारी वर्षा के दौरान मौसम विज्ञानिकों का मार्गदर्शन करेंगे। चूँकि रडार अवलोकन हर दस मिनट में अपडेट किये जाएंगे इसलिये पूर्वानुमानकर्त्ता मौसम प्रणालियों के विकास के साथ-साथ उनकी अलग-अलग तीव्रताओं को भी ट्रैक करने में सक्षम होंगे और इसके बाद मौसम की घटनाओं तथा उनके प्रभाव की भविष्यवाणी कर सकेंगे।
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD):
‘भारत मौसम विज्ञान विभाग’की स्थापना वर्ष 1875 में की गई थी। यह भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की एक संस्था है। यह मौसम संबंधी जानकारियों, मौसम पूर्वानुमान तथा भूकंपीय विज्ञान से संबंधित प्रमुख संस्था है।
रडार (Radio Detection and Ranging):
‘रडार’ एक ऐसा यंत्र है जो गति और दिशा, ऊँचाई और तीव्रता, गतिमान एवं स्थिर वस्तुओं की आवाजाही का पता लगाने के लिये सूक्ष्म तरंगीय क्षेत्र में विद्युत चुंबकीय तरंगों का उपयोग करता है।
डॉप्लर रडार:
यह विशेष रडार होता है जो एक दूसरे से कुछ दूरी पर स्थित वस्तुओं के वेग से संबंधित आँकड़ों को एकत्रित करने में डॉप्लर प्रभाव का प्रयोग करता है।
क्या है डॉप्लर प्रभाव ?
- किसी तरंग स्रोत तथा प्रेक्षक के बीच सापेक्षिक गति के परिणामस्वरूप प्रेक्षक को तरंग की आवृत्ति बदली हुई प्रतीत होती है। तरंग की आवृत्ति में इस आभासी परिवर्तन को ही ‘’डॉप्लर प्रभाव’ या डॉप्लर परिवर्तन (Doppler Shift) कहते हैं।
- यह एक वांछित वस्तु को माइक्रोवेव सिग्नल के जरिये लक्षित करता है और विश्लेषण करता है कि लक्षित वस्तु की गति ने वापस आने वाले सिग्नलों की आवृत्ति को किस तरह बदल दिया है। यह बदलाव ‘रडार’ के सापेक्ष लक्ष्य के वेग के रेडियल घटक का प्रत्यक्ष और अत्यधिक सटीक माप देती है।
डॉप्लर वेदर रडार (DWR):
- डॉप्लर सिद्धांत के आधार का उपयोग करते हुए ‘रडार’ में एक ‘पैराबॉलिक डिश एंटीना’ (Parabolic Dish Antenna) एवं एक फोम सैंडविच स्फेरिकल रेडोम (Foam Sandwich Spherical Radome) लगाकर मौसम पूर्वानुमान एवं निगरानी की सटीकता में सुधार करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- DWR में वर्षा की तीव्रता, वायु प्रवणता और वेग को मापने के उपकरण लगे होते हैं जो चक्रवात के केंद्र और धूल के बवंडर की दिशा के बारे में सूचना उपलब्ध कराते हैं।
डॉप्लर रडार के प्रकार:
तरंगदैर्ध्य के आधार पर डॉप्लर रडार को अलग-अलग श्रेणियों में विभाजित किया गया है, जैसे- एल( L), एस(S), सी(C), एक्स(X), के(K) रडार ।
X-बैंड रडार: यह 2.5 से 4 सेमी. की तरंगदैर्ध्य और 8 से 12 गीगाहर्ट्ज़ की आवृत्ति पर कार्य करता है । इतने छोटे तरंगदैर्ध्य के कारण X-बैंड रडार बहुत अधिक संवेदनशील होते हैं जो सूक्ष्म कणों का पता लगाने में सक्षम होते हैं।
इसका उपयोग तूफान और बिजली गिरने की जानकारी के लिये किया जाता है।
C-बैंड रडार: यह रडार 4 से 8 सेमी की तरंग दैर्ध्य और 4 से 8 गीगाहर्ट्ज़ की आवृत्ति पर कार्य करते हैं। तरंग दैर्ध्य और आवृत्ति के कारण, डिश का आकार बहुत बड़ा होने की आवश्यकता नहीं है।
इसमें सिग्नल अधिक आसानी से क्षीण हो जाते हैं, इसलिये इस प्रकार के रडार का उपयोग कम दूरी के मौसम अवलोकन के लिये सबसे उपयुक्त है। इस रडार का उपयोग चक्रवात ट्रैकिंग के समय मार्गदर्शन के रूप में किया जाता है।
S-बैंड रडार: यह 8 से 15 सेमी की तरंग दैर्ध्य और 2 से4 गीगाहर्ट्ज़ की आवृत्ति पर कार्य करता है। तरंग दैर्ध्य और आवृत्ति के कारण S- बैंड रडार आसानी से क्षीण नहीं होते हैं। इस विशेषता के कारण यह निकट और दूर के मौसम के अवलोकन के लिये उपयोगी होते हैं ।
स्रोत – इंडियन एक्सप्रेस