रवींद्रनाथ टैगोर और महात्मा गांधी शिक्षा के बारे में एक जैसे सोचते थे। उनमें क्या मतभेद थे।

प्रश्नकई मायनों में, रवींद्रनाथ टैगोर और महात्मा गांधी शिक्षा के बारे में एक जैसे सोचते थे। हालाँकि, उनमें भी मतभेद थे।” व्याख्या कीजिए। 22 December 2021

उत्तर महात्मा गांधी और रवींद्रनाथ टैगोर दोनों ने शिक्षा को मानव मन और चेतना के विकास के लिए एक उपकरण के रूप में देखा और माना कि साक्षर होने या केवल पढ़ने और लिखने की प्रक्रिया को शिक्षा नहीं माना जा सकता है।

इस संदर्भ में गांधीजी के विचार:

  • महात्मा गांधी का मानना था कि औपनिवेशिक शिक्षा ने भारतीयों के मन में हीनता की भावना विकसित की। इससे वे पाश्चात्य संस्कृति को श्रेष्ठ मानने लगे और वे अपनी संस्कृति पर गर्व करने की भावना खो बैठे। परिणामस्वरूप शिक्षित भारतीय ब्रिटिश शासन की प्रशंसा करने लगे।
  • उन्होंने इस बात पर बहुत जोर दिया कि शिक्षा का माध्यम भारतीय भाषा होनी चाहिए, क्योंकि अंग्रेजी शिक्षा जनता को एक दूसरे से नहीं जोड़ सकती थी।
  • पश्चिमी शिक्षा, उनके विचार में, वास्तविक अनुभवों और व्यावहारिक ज्ञान के बजाय पढ़ने और लिखने (यानी सैद्धांतिक ज्ञान) पर केंद्रित थी, और इसलिए कौशल विकास की कमी थी।

टैगोर के विचारः

  • टैगोर के अनुसार, स्कूली शिक्षा प्रणाली के कठोर और सीमित अनुशासन के बजाय बचपन में स्वाध्याय पर जोर दिया जाना चाहिए।
  • शिक्षक को बच्चे को समझने के लिए अधिक कल्पनाशील होना चाहिए ताकि वह अपनी जिज्ञासा विकसित करने में मदद कर सके।
  • उनके विचार में रचनात्मक शिक्षा को प्राकृतिक वातावरण में ही प्रोत्साहित किया जा सकता है।
  • उन्होंने शांतिनिकेतन में कला, संगीत और नृत्य शिक्षा के साथ-साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी शिक्षा प्रदान करने की आवश्यकता पर भी बल दिया।

उनके विचारों में समानताएं:

  • दोनों का मानना था कि शिक्षा मानव व्यक्तित्व के एकीकृत विकास के साधन के रूप में आवश्यक है।
  • दोनों का मानना था कि शिक्षा को व्यावहारिक ज्ञान से जोड़ा जाना चाहिए और शिक्षा में मातृभाषा के महत्व पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
  • दोनों ने औपनिवेशिक शिक्षा प्रणाली की आलोचना की।

उनके विचारों में असमानताएं:

  • महात्मा गांधी पश्चिमी शिक्षा के कटु आलोचक थे, परन्तु रवींद्रनाथ टैगोर पश्चिमी शिक्षा के सर्वोत्तम तत्वों को भारतीय शिक्षा प्रणाली में समाहित करना चाहते थे।
  • महात्मा गाँधी मशीनों एवं प्रौद्योगिकी के आलोचक थे, जबकि रवींद्रनाथ टैगोर परम्परागत ज्ञान के साथ आधुनिक विज्ञान की शिक्षा में भी विश्वास करते थे।
  • टैगोर ने शिक्षा के साधन के रूप में जिज्ञासा सृजित करने की प्लेटो की पद्धति को अपनाया, किन्तु महात्मा गाँधी अपनी “नई तालीम” की अवधारणा के माध्यम से क्रियाकलाप के माध्यम से शिक्षा’ (learning by activity) में विश्वास करते थे।

इस प्रकार, शिक्षा पर टैगोर और गांधी के विचारों के बीच समानताएं और असमानताएं दोनों थीं। इस संबंध में उनके विचार उनकी विभिन्न सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, राजनीतिक विचारों और जीवन के अनुभवों से प्रभावित थे।

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