राष्ट्रीय महत्त्व के स्मारक – युक्तिकरण की तत्काल आवश्यकता रिपोर्ट जारी
हाल ही में प्रधान मंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) ने ‘राष्ट्रीय महत्त्व के स्मारक -युक्तिकरण की तत्काल आवश्यकता’ रिपोर्ट जारी की है।
भारत में 3,695 ‘राष्ट्रीय महत्त्व के स्मारक (MNI) हैं। प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष (AMASR) अधिनियम, 1958 के तहत प्राचीन एवं ऐतिहासिक स्मारकों, पुरातात्विक स्थलों तथा अवशेषों को MNI घोषित किया जाता है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ऐसे स्मारकों की सुरक्षा, संरक्षण और रखरखाव के लिए उत्तरदायी है।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष
MNI की वर्तमान सूची से संबंधित चिंताएं
चयन संबंधी त्रुटियां: MNI की वर्तमान सूची में से लगभग एक चौथाई स्मारक संभवतः राष्ट्रीय महत्त्व के नहीं हैं ।
लघु स्मारकों को MNI मान लिया गया है। उदाहरण के लिए- कोस मीनार, ब्रिटिश अधिकारियों की कब्रें आदि।
एक-जगह से दूसरी जगह ले जा सकने वाले पुरावशेषों को भी MNI मान लिया गया है । उदाहरण के लिए एकल पुरावशेष, जैसे – मूर्तियों के खंड, प्रतिमाएं, तोप आदि ।
ऐसे स्मारक जिनकी कोई जानकारी नहीं है, उन्हें अभी भी MNI माना जा रहा है। ऐसे लगभग 50 स्मारक हैं ।
60 प्रतिशत से अधिक स्मारक पांच राज्यों (उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र) में स्थित हैं।
MNI के संरक्षण और रख-रखाव पर किया जाने वाला व्यय अपर्याप्त है।
समस्या का मूल ‘राष्ट्रीय महत्त्व’ शब्द की परिभाषा की अनुपस्थिति तथा AMASR अधिनियम या राष्ट्रीय संरक्षण नीति 2014 में MNI की पहचान करने के लिए निर्धारित मूल प्रक्रिया / मापदंडों का अभाव है।
रिपोर्ट में की गई अनुशंसाएं
ASI को MNI घोषित करने के लिए ठोस मानदंड तय करने चाहिए ।
राष्ट्रीय महत्त्व को परिभाषित करने के लिए AMASR अधिनियम में संशोधन किए जाएं या कार्यकारी आदेश जारी किया जाए । स्थानीय महत्त्व के स्मारकों को राज्यों को सौंप देना चाहिए ।
आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जा सकने योग्य पुरावशेषों को MNI की सूची से हटा देना चाहिए ।
जिन स्मारकों की जानकारी नहीं है और लघु स्मारकों को भी सूची से हटा देना चाहिए ।
भौगोलिक असंतुलन को दूर करने के लिए नए स्मारकों को सूची में शामिल करना चाहिए।
MNI की सुरक्षा के लिए धन आवंटन में वृद्धि करने की आवश्यकता है।
किसी भी स्मारक को राष्ट्रीय महत्व का घोषित करने के लिए मानदंड
प्राचीन स्मारक या पुरातात्विक स्थल 100 वर्ष से कम पुराना नहीं होना चाहिए
इसका विशेष ऐतिहासिक, पुरातात्विक या कलात्मक महत्व होना चाहिए; तथा ऐसे स्थलों/स्मारकों से संबंधित लोगों को उन्हें राष्ट्रीय महत्व का घोषित करने में कोई बड़ी आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
स्रोत – इकोनॉमिक्स टाइम्स