मत की गोपनीयता
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि भारत में होने वाले किसी भी चुनाव में, चाहे वह संसद के लिए हो या राज्य विधानमंडल के लिए , मतदान की गोपनीयता बनाए रखना अनिवार्य होगा ।
सर्वोच्च न्यायालय ने यह बात अपने वर्ष 2013 के फैसले ‘पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़’ के मामले में दोहराते हुए कही है ।
नवीनतम निर्णय की मुख्य विशेषताएँ:
- संविधान के मौलिक अधिकार के अंतर्गत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के साथ ही गोपनीयता का का अधिकार जुड़ा हुआ है, क्योंकि किसी की पसंद की गोपनीयता से ही लोकतंत्र मज़बूतऔर स्थिर होता है।
- इसके साथ ही लोकतंत्र में और स्वतंत्र चुनाव संविधान के आधारभूत ढाँचे का ही भाग हैं।
- वर्ष 1973 में केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले के ऐतिहासिक निर्णय में ही ‘मूल संरचना’ या आधारभूत ढाँचे की अवधारणा अस्तित्व में आई।
- बूथ कैप्चरिंग या फर्जी वोटिंग से तत्काल निपटा जाना चाहिये, क्योंकि यह अंततः कानून और लोकतंत्र के शासन को प्रभावित करता है।
- भारत में किसी को भी स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के अधिकार को कमज़ोर करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
- एक बार जब गैर-कानूनी सभा सामान्य उद्देश्य के अभियोजन में लग जाती है, तो गैर-कानूनी सभा के सभी सदस्य दंगा करने के अपराध का दोषी होता है।
- चाहे विधानसभा के किसी एक सदस्य द्वारा किया गया साधारण सा व्यवहार हो, परंतु यदि इसे एक बार गैर-कानूनी कार्य के रूप में स्थापित कर दिया गया तो इसे दंगों की परिभाषा में शामिल किया जाता है।
- ‘गैर-कानूनी सभा’ की परिभाषा भारतीय कानून के अनुसार, भारतीय दंड संहिता की धारा 141 में निर्धारित की गई है।
पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ केस, 2013 में निर्णय:
उच्चतम न्यायालय के निर्णय से जो 2 मुख्य बातें सामने आईं, वे इस प्रकार हैं:
- वोट के अधिकार में वोट न देने का अधिकार अर्थात् अस्वीकार करने का अधिकार भी सम्मिलित है।
- गोपनीयता का अधिकार स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव का एक अभिन्न अंग है।
अस्वीकार करने का अधिकार:
- इससे अभिप्राय है कि मतदान करते समय एक मतदाता को चुनाव के दौरान किसी भी उम्मीदवार को न चुनने का भी पूर्ण अधिकार है।
- अर्थात इस अधिकार का तात्पर्य तटस्थ रहने के विकल्प से है। यह वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से निकला हुआ है।
- मतदान में ‘उपरोक्त में से कोई नहीं’ (‘None of the Above’- NOTA) के बटन का विकल्प शामिल करने से चुनावी प्रक्रिया में जनता की भागीदारी बढ़ सकती है।
गोपनीयता का अधिकार:
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 के अनुसार प्रतिशोध, दबाव या भय के बिना मतदान करना मतदाता का केंद्रीय अधिकार है।
- इसलिए निर्वाचक की पहचान की सुरक्षा करना और उसे गोपनीयता प्रदान करना स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों का अभिन्न हिस्सा है।
- मतदान करने वाले मतदाताओं और मतदान न करने वाले मतदाताओं के मध्य अंतर करना भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14, अनुच्छेद-19(1)(क) तथा अनुच्छेद-21 का उल्लंघन है।
- मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा का अनुच्छेद 21(3) और ‘इंटरनेशनल कोवेनेंटऑन सिविल एंड पॉलिटिकस राईट’ का अनुच्छेद-25(ख ) ‘गोपनीयता के अधिकार’ से संबंधित हैं।
अन्य संबंधित निर्णय:
इससे पूर्व उच्चतम न्यायालय ने यह स्वीकार किया था कि मतपत्रों की गोपनीयता का सिद्धांत संवैधानिक लोकतंत्र का एक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है, और इसे ‘जनप्रतिनिधित्व अधिनियम’ (RPA) 1951 की धारा 94 के तहत संदर्भित किया गया है। धारा 94 मतदाताओं के वोट की पसंद के बारे में गोपनीयता बरक़रार रखने के विशेषाधिकार को बनाए रखती है।
स्रोत – पी आई बी