विश्व व्यापार संगठन (WTO) में मत्स्यन सब्सिडी का मामला

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विश्व व्यापार संगठन (WTO) में मत्स्यन सब्सिडी का मामला

हाल ही में भारत, विश्व व्यापार संगठन (WTO) में मत्स्यन सब्सिडी को तत्काल समाप्त करने का विरोध करेगा। WTO के सदस्य विश्व भर में अति मत्स्यन और मछली के स्टॉक की कमी का कारण बनने वाली ‘अहितकर’ मत्स्योद्योग सब्सिडी को प्रतिबंधित करने हेतु एक समझौते पर पहुंचने की मांग कर रहे हैं।

  • इस संबंध में पहली बार वार्ता वर्ष 2001 में दोहा मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में आरंभ की गई थी।
  • वैश्विक मत्स्य पालन सब्सिडी को कम करने के उद्देश्य से विश्व व्यापार संगठन के एक प्रारूपपाठ में विकासशील और अल्पविकसित देशों द्वारा तट के निकट मात्स्यिकी के लिए दी जाने वाली सब्सिडी हेतु समयबद्ध छूट का प्रस्ताव किया गया है।
  • विकसित देशों का दावा है कि मत्स्य पालन सब्सिडी वैश्विक मत्स्य बाजारों में गंभीर विकृतियां उत्पन्न करती है। साथ ही, उनका यह भी मानना है कि यह बहुतायत में मत्स्यन और अति क्षमता तथा मछलियों की कमी में योगदान करने वाला एक प्रमुख कारक है।

भारत की चिंताः

  • विकासशील देशों के विशेष और विमेदक उपचार (Special and Differential Treatment: S&DT) अधिकारों का कमजोर होना।
  • सब्सिडी को समाप्त करने से निम्न आय वाले और संसाधनहीन मछुआरों के लिए आजीविका के साधनकम होंगे। साथ ही यह देश की खाद्य सुरक्षा को सीमित कर देगा।
  • तटीय देशों के अपने समुद्री अधिकार क्षेत्र (अंतर्राष्ट्रीय संघियों आदि में निहित) के भीतर जीवितसंसाधनों का पता लगाने, दोहन करने और प्रबंधन करने के संप्रभु अधिकारों को संरक्षित किया जाना चाहिए। इसे विश्व व्यापार संगठन विवाद निपटान तंत्र के अधीन नहीं होना चाहिए।
  • किसी भी समझौते को यह स्वीकार करना चाहिए कि विभिन्न देश विकास के विभिन्न चरणों में हैं और वर्तमान मत्स्यन व्यवस्था को इसे अवश्य प्रतिबिंबित करना चाहिए।

विशेष और विभेदक उपचार (S&DT)

S&DT विकासशील देशों के लिए कई प्रकार से लचीलापनप्रदान करते हैं, जैसे कि समझौतों और प्रतिबद्धताओं को लागू करने के लिए दीर्घावधि, प्रतिबद्धता का कम स्तर व्यापारिक अवसरों को बढ़ाने के उपाय आदि।

स्रोत – द हिन्दू

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