भोजन में मिलेट्स को बढ़ावा देने के संदर्भ में नीति आयोग की रिपोर्ट
नीति आयोग ने “भोजन में मिलेट्स को बढ़ावा देनाः भारत के राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में सर्वोत्तम प्रथाएं” शीर्षक से रिपोर्ट जारी की है।
- यह रिपोर्ट मिलेट्स मूल्य – श्रृंखला के अलग-अलग पहलुओं में राज्य सरकारों और संगठनों द्वारा अपनाई जाने वाली बेहतरीन व नवोन्मेषी प्रथाओं को प्रस्तुत करती है ।
- मिलेट्स (मोटा अनाज) को पोषक – अनाज के रूप में भी जाना जाता है । ये छोटी व गोल बीज वाली वार्षिक घासों के सामूहिक समूह हैं।
- इन्हें मनुष्य के भोजन या पशुचारे के लिए अनाज की फसल के रूप उगाया जाता है। इनका सेवन मुख्य रूप से शुष्क व अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में किया जाता है।
- मिलेट्स के कुछ उदाहरण हैं; ज्वार, बाजरा, रागी, कंगनी (फॉक्सटेल मिलेट), चेना (प्रोसो मिलेट) आदि
- भारत विश्व में मिलेट्स का सबसे बड़ा उत्पादक है और दुनिया में मिलेट्स के शीर्ष 5 निर्यातकों में शामिल है।हालांकि, भारत में इसकी खेती के अंतर्गत क्षेत्र के साथ-साथ उत्पादन में भी गिरावट आई है।
इसके निम्नलिखित कारण हैं:
- मिलेट्स उत्पादन की तुलना में चावल और गेहूं जैसी फसलों को बढ़ावा दिया जा रहा है।
- अन्य फसलों की तुलना में मिलेट्स उत्पादन से कम लाभ प्राप्त होता है ।
- इन फसलों की अपेक्षाकृत कम शेल्फ लाइफ होती है। इस कारण से भंडारण संबंधी समस्याएं आती हैं।
- शहरीकरण तथा ‘रेडी टू ईट’ मिलेट्स अनुपलब्ध होने के कारण इन फसलों की कम मांग है।
भारत में मिलेट्स उपभोग को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई पहलें:
- मिलेट्स को “पोषक-अनाज” घोषित किया गया है;
- इन्हें राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM) में शामिल किया गया है;
- वर्ष 2018 को ‘राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष’ घोषित किया गया था;
- संयुक्त राष्ट्र महासभा 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष के रूप में मना रही है आदि ।
मिलेट्स उपभोग को प्रोत्साहित करने के लिए राज्यों द्वारा आरंभ की गई पहलें
- आंध्र प्रदेश में आदिवासियों द्वारा की जाने वाली मिलेट्स की खेती का व्यापक पुनरुद्धार किया जा रहा है, और सूखा शमन परियोजना चलाई जा रही है।
- नागालैंड में NFSM – पोषक अनाज मिशन, तमिलनाडु मिलेट मिशन जैसी योजनाएं शुरू की गई हैं।
मिलेट्स के लाभः
- ये पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं,
- इनमें मधुमेह-रोधी गुण मौजूद हैं,
- इनकी खेती के लिए कम पानी की आवश्यकता होती है,
- इनकी खेती में कम लागत आती है,
- इनमें जलवायु के प्रतिकूल प्रभावों को सहने की क्षमता होती है आदि ।
स्रोत – पी.आई.बी.