भूस्खलन पूर्व चेतावनी प्रणाली (LEWS) का परीक्षण
भूस्खलन पूर्व चेतावनी प्रणाली (Landslide Early warning system: LEWS)
हाल ही में भूस्खलन पूर्व चेतावनी प्रणाली (Landslide Early warning system: LEWS) का परीक्षण किया जा रहा है।
इसे 2017 से यूके लैंडस्लिप (लैंडस्लिप) परियोजना के तत्वावधान में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) द्वारा विकसित किया जा रहा है।
इसको वर्ष 2017 से भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) द्वारा ब्रिटेन की लैंडस्लिप (LANDSLIP) परियोजना के तत्वावधान में विकसित किया जा रहा है।
यह वर्षा की सीमा पर आधारित है।
LANDSLIP उन कारकों की समझ विकसित करने के लिए कार्य कर रहा है, जो भूस्खलन को सक्रिय करते हैं। इसमें मौसम प्रणाली, वर्षा और भूवैज्ञानिक स्थितियां शामिल हैं।
भूस्खलन, भूमि के ढलान वाले हिस्से में चट्टान, भू-खंड या मलबे का नीचे की ओर संचलन करना है।
भूस्खलन के प्रमुख कारणः
- भूवैज्ञानिक (कमजोर या खंडित मृदा / चट्टान), आकारिक (ऐसी ढलानें, जहां अग्निया सूखे के कारण वनस्पति विलुप्त हो चुकी है या अधिक सुभेद्य होती है), मानव गतिविधि (वनों की कटाई,उत्खनन आदि)।
लगभग 12% भारतीय भू-भाग भूस्खलन के प्रति प्रवण है। इसमें हिमालय और पश्चिमी घाट क्षेत्र विशेषरूप से प्रवण हैं। वर्ष 2020 के दक्षिण-पश्चिम मानसून के बाद से, GSI ने दार्जिलिंग और नीलगिरी में जिला प्रशासन के लिएदैनिक भूस्खलन पूर्वानुमान जारी करना शुरू कर दिया है। इसके अतिरिक्त, GSI ने LEWS के तहत वर्ष 2022 तक पांच और राज्यों- हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, असम,मेघालय एवं मिजोरम को शामिल करने की योजना बनाई है।
भारत में की गई अन्य पहले
देश के अलग-अलग हिस्सों में GSI का भूस्खलन संवेदनशीलता मानचित्रण किया गया है। भूस्खलन आपदा क्षेत्रीकरण के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) द्वारा दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं।
स्रोत – द हिन्दू