‘भुला दिए जाने का अधिकार‘ ‘निजता के अधिकार‘ में शामिल है
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने ‘भुला दिए जाने के अधिकार’ को मान्यता दी है, और कहा कि यह ‘निजता के अधिकार’ में शामिल है।
- उच्चतम न्यायालय ने अपनी रजिस्ट्री को सर्च इंजन और इंटरनेट से कुछ दंपतियों से जुड़ी जानकारियों को हटाने का निर्देश दिया है।
- ये दंपति वैवाहिक कलह का सामना कर रहे हैं। न्यायालय के अनुसार ये जानकारियां संबंधित महिलाओं के लिए शर्मिंदगी और सामाजिक कलंक का कारण बन रही हैं। साथ ही उनकी निजता का उल्लंघन भी करती हैं।
- याचिकाकर्ता ने ‘भुला दिए जाने के अधिकार’ (right to be forgotten), और सूचनाओं को ‘हटा दिए जाने के अधिकार’ (right of erasure) को ‘निजता के अधिकार’ का अभिन्न हिस्सा बताया था।
- विदित हो कि, ’निजता के अधिकार’ को पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ (2017) मामले में उच्चतम न्यायालय ने मौलिक अधिकार माना था। यह निर्णय निजता के अधिकार और ‘भुला दिए जाने केअधिकार’ के दायरे का विस्तार करता है।
- ‘भुला दिए जाने का अधिकार’ व्यक्तियों को विशेष परिस्थितियों में अपनी निजी जानकारी को इंटरनेट, वेबसाइट्स या किसी अन्य सार्वजनिक प्लेटफॉर्म से हटानेका अधिकार देता है।
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम-2000 के तहत भारत में वर्तमान डेटा संरक्षण व्यवस्था, ‘भुला दिए जाने के अधिकार’ को वैधता प्रदान नहीं करती है। लेकिन विचाराधीन डेटा संरक्षण विधेयक में इस अवधारणा को शामिल किया गया है।
- ‘भुला दिए जाने का अधिकार’ व्यापक जनहित में या राज्यकी कानूनी जरूरतों के लिए निजता के अधिकार और सूचना के अधिकार के बीच एक नाजुक संतुलन स्थापित करने पर बल देता है।
स्रोत –द हिन्दू