भीमा कोरेगांव लड़ाई
हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय द्वारा भीमा कोरेगांव कार्यकर्ताओं की रिहाई की मांग की गयी है।
संबंधित प्रकरण:
- भीमा कोरेगांव मामले की शुरुआत 1 जनवरी, 2018 को हुई थी। इस दिन भीमा कोरेगांव लड़ाई की 200वीं वर्षगांठ मनाने के लिए एक समारोह आयोजित किया गया था।
- इस कार्यक्रम का आयोजन, पेशवा बाजी राव द्वितीय की सेना के खिलाफ ब्रिटिश सेना की जीत का जश्न मनाने के लिए किया गया था। इस लड़ाई में ब्रिटिश सेना की ओर से ‘महार’ सैनिकों ने युद्ध किया था।
- भीमा कोरेगांव मामले में जांच के दौरान सुधा भारद्वाज, वरवरा राव और गौतम नवलखा सहित कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया।
भीमा-कोरेगांव लड़ाई के बारे में:
- पुणे के एक जिले ‘भीमा कोरेगांव’ में 1 जनवरी, 1818 को पेशवा सेनाओं और अंग्रेजों के बीच हुई एक लड़ाई के साथ दलितों का महत्वपूर्ण ऐतिहासिक संबंध है।
- ब्रिटिश सेना, जिसमें मुख्य रूप से दलित सैनिक शामिल थे, ने उच्च जातियों के वर्चस्व वाली पेशवा सेना का मुकाबला किया। इस युद्ध में ब्रिटिश सेना ने पेशवा सेना को पराजित किया था।
लड़ाई के परिणाम:
- भीमा-कोरेगांव लड़ाई में विजय को जाति-आधारित भेदभाव और उत्पीड़न के खिलाफ एक जीत के रूप में देखा गया। पेशवा, महार दलितों के उत्पीड़न और उन पर अत्याचार करने के लिए कुख्यात थे। इस लड़ाई में पेशवाओं के ऊपर विजय ने दलितों को एक नैतिक जीत प्रदान की, जोकि जाति आधारित भेदभाव एवं उत्पीड़न और पहचान की भावना के खिलाफ एक जीत थी।
- हालाँकि, अंग्रेजों की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति ने भारतीय समाज में कई दरारें पैदा कर दी, जो आज भी जाति और धार्मिक भेदभाव के विकराल रूप में दिखाई देती है, जिस पर संविधान के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए रोक लगाने की आवश्यकता है।
‘भीमा कोरेगांव’ को ‘दलित प्रतीक’ के रूप में क्यों देखा जाता है?
- इस लड़ाई को दलित गौरव के प्रतीक के रूप में देखा जाने लगा है, क्योंकि कंपनी की सेना में अधिकाँश सैनिक ‘महार’ दलित थे। चूंकि पेशवा, जोकि ब्राह्मण थे, उन्हें दलितों के उत्पीड़क के रूप में देखा जाता था और इसलिए पेशवा सेना पर महार सैनिकों की जीत को दलित शक्ति के रूप में देखा जाता है।
- 1 जनवरी, 1927 को डा. भीमराव अंबेडकर ने युद्धस्थल पर बने ‘स्मारक-स्तंभ’ का दौरा किया, इस स्तंभ पर लगभग दो दर्जन महार सैनिकों सहित मृतकों के नाम दर्ज हैं। कोरेगांव की लड़ाई में भाग लेने वाले सैनिक महार थे और महार अछूत थे।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय:
- संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय को ‘संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार’ भी कहा जाता है, यह मानव अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र की अग्रणी संस्था है।
- OHCHR का उद्देश्य, संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव 48/141 के अनुसार निर्धारित सभी मानवाधिकारों की रक्षा करने और इन्हें प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए तथा इनसे संबंधित आवश्यक समर्थन करना है।
- इसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकारों के अनुपालन को प्रोत्साहित करना भी है, और इसके तहत OHCHR, अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनी दायित्वों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने हेतु स्थानीय अदालतों का सहयोग करना है। यही हस्तक्षेप की मांग करने का आधार है।
स्रोत – द हिन्दू