भारत सरकार ने आर्कटिक नीति मसौदा जारी
- इसमें आर्कटिक क्षेत्र में वैज्ञानिक अनुसंधान, स्थाई पर्यटन और खनिज तेल व गैस की खोज के विस्तार हेतु प्रतिबद्धता व्यक्त की गई है।
- इस नीति में आर्कटिक क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और भारत के मानसून के साथ इसके संबंधों को समझना आदिको शामिल किया गया है।
- नीति में आर्कटिक क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों और खनिजों का जिम्मेदारीपूर्वक अन्वेषण व खनन, बंदरगाहों, रेलवे एवं हवाई अड्डों में निवेश के अवसरों को पहचानने की आवश्यकता जाहिर की गई है।
- यह नीति पांच स्तंभों पर आधारित है:
- विज्ञान और अनुसंधान गतिविधियाँ
- आर्थिक और मानव विकास सहयोग
- परिवहन और कनेक्टिविटी
- शासन और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
- राष्ट्रीय क्षमता निर्माण
- गोवा स्थित ‘नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च’ वैज्ञानिक अनुसंधान का नेतृत्व करेगा और एक नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करेगा।
- यह घरेलू वैज्ञानिक अनुसंधान क्षमताओं को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारतीय विश्विद्यालयों में पृथ्वी विज्ञान, जैविक विज्ञान औरजलवायु परिवर्तन के विषयों के पाठ्यक्रम मेंआर्कटिक अनिवार्यताओं को शामिल करने के लियेविभिन्न एजेंसियों के मध्य समन्वय स्थापित करेगा।
- आर्कटिक अनुसंधान, भारत के वैज्ञानिक समुदाय को तीसरे ध्रुव – हिमालयी ग्लेशियरों के पिघलने की दर का अध्ययन करने में मदद करेगा, जो कि भौगोलिक ध्रुवों से बाहर ताजे पानी का सबसे बड़ा स्रोत है।
आर्कटिक क्षेत्र:
- आर्कटिक क्षेत्र के अंतर्गत आठ देश; डेनमार्क, कनाडा,अमेरिका, नॉर्वे, रूस, स्वीडन, फिनलैंडतथा आइसलैंड आते हैं।ये देश अंतर-सरकारी फोरम ‘आर्कटिक परिषद’ के सदस्य हैं।
इस क्षेत्र में लगभग चालीस लाख लोग रहते हैं, जिसमें से लगभग 10% लोग स्थानीय या मूल निवासी हैं।
स्रोत – द हिन्दू
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