भारत का समुद्री मत्स्यन के माध्यम से कार्बन फुटप्रिंट वैश्विक स्तर से कम
हाल ही में किये गए एक अध्ययन के अनुसार भारत का समुद्री मत्स्यन के माध्यम से कार्बन फुटप्रिंट वैश्विक स्तर से कम है।
- यह अध्ययन ICAR (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) – CMFRI (केंद्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान) ने किया था। इसका उद्देश्य मत्स्य क्षेत्रक से कार्बन उत्सर्जन का आकलन करना था।
- कार्बन फुटप्रिंट से तात्पर्य किसी गतिविधि से या संगठन द्वारा उत्सर्जित कार्बन की मात्रा है। इसे आमतौर पर टन में व्यक्त किया जाता है।
जलवायु परिवर्तन में मत्स्यन कैसे योगदान करता है?
- वर्ष 2016 में भारत ने एक टन मछली का उत्पादन करने के लिए 1.32 टन CO, का उत्सर्जन किया था। यह 2 टन के वैश्विक औसत से कम है ।
- मत्स्यन में बड़ी मात्रा में ईंधन की खपत से ग्रीनहाउस गैसों का अत्यधिक उत्सर्जन होता है।
- सक्रिय मत्स्यन से इस क्षेत्र में उपयोग होने वाले कुल ईंधन का 90 प्रतिशत से अधिक खपत होता है। इससे वार्षिक रूप से 4,934 मिलियन किलोग्राम CO, उत्सर्जित होती है।
- भारी जालों का उपयोग करके मछलियां पकड़ने से वैश्विक स्तर पर उतना ही CO, उत्सर्जित होता है, जितना कि विमानन उद्योग से उत्सर्जित होता है। भारी जाल समुद्र नितल से मछलियां खींचते हैं। इसे बॉटम ट्रॉलिंग कहा जाता है।
- समुद्र नितल पर जमा तलछट विशाल कार्बन सिंक के रूप में कार्य करता है। बॉटम ट्रॉलिंग के दौरान तलछट में हलचल उत्पन्न होने से CO, का उत्सर्जन होता है ।
जलवायु परिवर्तन पर मत्स्यन के प्रभाव को कम करने के उपाय
- मत्स्यन के लिए ईंधन की कम खपत करने वाले और कम प्रभाव उत्पन्न करने वाले तरीकों को अपनाना चाहिए।
- पर्यावरण को हानि पहुंचाने वाली ईंधन सब्सिडी को समाप्त कर देना चाहिए। साथ ही, मत्स्यन के लिए ईंधन पर कर में छूट को चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर देना चाहिए।
- मत्स्यन की वैकल्पिक तकनीकों के लिए वित्तीय और अन्य प्रोत्साहन प्रदान किए जाने चाहिए ।
केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (CMFRI):
- CMFRI की स्थापना भारत सरकार द्वारा वर्ष 1947 में कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के तहत की गई थी एवं बाद में यह वर्ष 1967 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ( Indian Council of Agricultural Research- ICAR) में शामिल हो गया।
- CMFRI कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के तहत काम करने वाले दुनिया में कृषि अनुसंधान तथा शिक्षा संस्थानों का सबसे बड़ा नेटवर्क है।
स्रोत – डाउन टू अर्थ